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वेमि॑ त्वा पूषन्नृ॒ञ्जसे॒ वेमि॒ स्तोत॑व आघृणे । न तस्य॑ वे॒म्यर॑णं॒ हि तद्व॑सो स्तु॒षे प॒ज्राय॒ साम्ने॑ ॥

English Transliteration

vemi tvā pūṣann ṛñjase vemi stotava āghṛṇe | na tasya vemy araṇaṁ hi tad vaso stuṣe pajrāya sāmne ||

Pad Path

वेमि॑ । त्वा॒ । पू॒ष॒न् । ऋ॒ञ्जसे॑ । वेमि॑ । स्तोत॑वे । आ॒घृ॒णे॒ । न । तस्य॑ । वे॒मि॒ । अर॑णम् । हि । तत् । व॒सो॒ इति॑ । स्तु॒षे । प॒ज्राय॑ । साम्ने॑ ॥ ८.४.१७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:4» Mantra:17 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:33» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:17


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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वर ही कमनीय है, यह इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (पूषन्) हे पोषक इन्द्र देव ! (ऋञ्जसे) तेरी प्रीति के साधन के लिये (त्वाम्) तुझको (वेमि) चाहता हूँ। (आघृणे) हे महाप्रकाशक ! (स्तोतवे) स्तुति करने के लिये (वेमि) तुझको ही मैं चाहता हूँ। (वसो) हे वासक इन्द्र ! (तस्य) आपको छोड़ अन्य सूर्य्यादि प्रसिद्ध देव के (तत्) स्तोत्र को (न+वेमि) नहीं चाहता हूँ अर्थात् अन्य देवों की स्तुति करना मैं नहीं चाहता (हि) क्योंकि (अरणम्) वह अरमणीय असुखकर है, इसलिये हे इन्द्र ! (स्तुषे) स्तुति करनेवाले (पज्रे) उद्योगशील और (साम्ने) सामगान करते हुए मुझको अभिलषित धन दे ॥१७॥
Connotation: - वही ईश सर्वपोषक और सर्वप्रकाशक है, अतः हे मेधाविगण ! उसी की प्रीति की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करो और अन्य देवों को छोड़ उसी की प्रार्थना करो। वह करुणालय तुमको सर्व क्लेश से दूर कर देगा ॥१७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (पूषन्) हे पोषक इन्द्र ! (ऋञ्जसे) कार्यसिद्धि के लिये (त्वा, वेमि) मैं आपको जानता हूँ (आघृणे) आप दीप्तिमान् हैं, इसलिये (स्तोतवे) स्तुति करने के लिये (वेमि) आपको जानता हूँ (तस्य) दूसरे को (न, वेमि) नहीं जानता (तत्, हि, अरणम्) क्योंकि वह रमणीय नहीं है (वसो) हे आच्छादयिता ! (स्तुषे) आपकी स्तुति करनेवाले मुझको (पज्राय, साम्ने) स्व प्रार्जित साम दीजिये ॥१७॥
Connotation: - हे सबके पोषक इन्द्र=कर्मयोगिन् ! आप ही कार्य्य सिद्ध करनेवाले, आप देदीप्यमान तथा स्तुति करने योग्य हैं, आपके विना अन्य कोई स्तुति के योग्य नहीं और न मैं किसी अन्य को जानता हूँ, हे युद्धकुशल भगवन् ! आप मुझको प्रार्जित=एकत्रित किया हुआ साम दीजिये अर्थात् सदा के लिये कल्याण तथा ऐश्वर्य्य प्रदान कीजिये ॥१७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वर एव कमनीयोऽस्तीति दर्शयति।

Word-Meaning: - हे पूषन्=सर्वपोषक इन्द्र ! ऋञ्जसे=प्रसाधयितुं=तव प्रीतिं प्राप्तुम्। त्वा=त्वामेव। वेमि=कामये। हे आघृणे=महाप्रकाशक देव ! स्तोतवे=स्तोतुम्। त्वामेव। वेमि=कामये। नान्यदेवान्। हे वसो=वासप्रद ! तस्य=अन्यस्य प्रसिद्धस्य सूर्य्यादेः। तत्=स्तोत्रम्। न वेमि=न कामये। हि=यतः। तद्। अरणम्=अरमणीयसुखकरम्। हे इन्द्र ! स्तुषे=स्तुवते। पज्राय=उद्योगिने। साम्ने=सामगानवते। मह्यम्। अभिलषितं विज्ञानं देहीति शेषः ॥१७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (पूषन्) हे पोषकेन्द्र ! (ऋञ्जसे) कार्यं साधयितुं (त्वा, वेमि) त्वां जानामि (आघृणे) आगतदीप्ते (स्तोतवे) स्तोतुम् (वेमि) जानामि (तस्य) त्वदन्यं च (न, वेमि) न जानामि (तत्, हि, अरणम्) स हि अरमणीयः (वसो) हे आच्छादयितः ! (स्तुषे) स्तुवते मह्यम् (पज्राय, साम्ने) भवद्भिः प्रार्जितं साम देहि ॥१७॥