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प्र पू॒षणं॑ वृणीमहे॒ युज्या॑य पुरू॒वसु॑म् । स श॑क्र शिक्ष पुरुहूत नो धि॒या तुजे॑ रा॒ये वि॑मोचन ॥

English Transliteration

pra pūṣaṇaṁ vṛṇīmahe yujyāya purūvasum | sa śakra śikṣa puruhūta no dhiyā tuje rāye vimocana ||

Pad Path

प्र । पू॒षण॑म् । वृ॒णी॒म॒हे॒ । युज्या॑य । पु॒रु॒ऽवसु॑म् । सः । श॒क्र॒ । शि॒क्ष॒ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । नः॒ । धि॒या । तुजे॑ । रा॒ये । वि॒ऽमो॒च॒न॒ ॥ ८.४.१५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:4» Mantra:15 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:32» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:15


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SHIV SHANKAR SHARMA

सर्व देवताओं में परमात्मा ही अङ्गीकर्तव्य है, यह इससे सिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे भगवन् ! हम उपासक जन (युज्याय) मित्रता के लिये (पुरूवसुम्) सर्वव्यापी, सर्वधन तथा (पूषणम्) पोषणकर्त्ता तुझको (प्र) अतिशय (वृणीमहे) भजते हैं या केवल तुझे ही अङ्गीकार करते हैं, अन्य किसी को नहीं। (शक्र) हे सर्वशक्तिमन् ! (पुरुहूत) हे सर्वपूज्य (विमोचन) हे पापों से बचानेवाले ईश ! (सः) वह तू (तुजे) पापों को विनष्ट करने के लिये तथा (राये) ज्ञानप्राप्त्यर्थ (धिया) कर्म या विज्ञान के द्वारा (शिक्ष) हमको शिक्षा दे। अथवा (धिया) ज्ञान द्वारा (राये) पूर्ण धन (शिक्ष) दे ॥१५॥
Connotation: - हे स्त्रियो तथा मनुष्यो ! वह ईश सर्वशक्तिमान्, सर्वपूज्य, सर्वदुःखनिवारक और सर्वधनसम्पन्न है, अतः अन्य देवों को छोड़ उसी को सर्वभाव से स्वीकार करो। उसी को सखा बनाओ। हम भी उसी को चुनते हैं ॥१५॥
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ARYAMUNI

अब धनलाभ तथा शत्रुनाश के लिये कर्मयोगी से शिक्षा की प्रार्थना करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (पुरुवसुम्, पूषणम्) बहुत धनवाले पोषक कर्मयोगी को (युज्याय) सखित्व के लिये (प्रवृणीमहे) भजन करते हैं (शक्र) हे समर्थ (पुरुहूत) अनेक जनों से आहूत ! (विमोचन) दुःख से छुड़ानेवाले (सः) वह आप (नः) हमको (धिया) अपनी शुभबुद्धि से (तुजे) शत्रुनाश तथा (राये) धनलाभ के लिये (शिक्ष) शिक्षा दीजिये ॥१५॥
Connotation: - हे ऐश्वर्य्यसम्पन्न तथा पालक-पोषक कर्मयोगिन् ! हम लोग आपसे मित्रता प्राप्त करने के लिये यत्नवान् हैं। हे भगवन् ! आप हमको दुःखों से छुड़ाकर सुखप्रदान करनेवाले हैं। कृपा करके अपनी शुद्धबुद्धि से हमको शत्रुनाश तथा ऐश्वर्य्यलाभार्थ शिक्षा दीजिये, जिससे हम निश्चिन्त होकर याज्ञिक कार्यों को पूर्ण करें ॥१५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

सर्वदेवतासु परमात्मैवाङ्गीकर्तव्य इत्यनया शिक्षते।

Word-Meaning: - हे ईश ! वयमुपासकाः। युज्याय=युङ्क्त इति युङ् सखा तस्य भावाय। सखित्वायेत्यर्थः। पुरूवसुम्=सर्वधनं सर्वव्यापकं वा। पूषणम्=पोषयितारम्। त्वामिन्द्रम्। प्र=प्रकर्षेण। वृणीमहे=संभजामहे। हे विमोचन=पापेभ्यो मोचयितः=निवारक ! त्वामेव स्वीकुर्मः। नान्यं देवमित्यर्थः। हे शक्र=सर्वशक्तिमन् ! हे पुरुहूत=बहुभिः पूज्य ! नोऽस्मान्। धिया=कर्मणा विज्ञानेन च। शिक्ष=अध्यापय शक्तान् कुरु वा। तथा। तुजे=पापानि तोजयितुम्=हिंसितुम्। तुज हिंसायां कृत्यार्थे केन् प्रत्ययः। राये=ज्ञानधनप्राप्तये च। अस्मान्। शिक्ष=शक्तान् कुरु ॥१५॥
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ARYAMUNI

अथ धनादिरक्षार्थं कर्मयोगिणः शिक्षायै प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - (पुरुवसुम्, पूषणम्) बहुधनं पोषकं कर्मयोगिनम् (युज्याय) सखित्वाय (प्रवृणीमहे) प्रभजामहे (शक्र) हे समर्थ (पुरुहूत) बहुभिर्हूत ! (सः) स त्वम् (नः) अस्मान् (धिया) स्वबुद्ध्या (तुजे) शत्रुहिंसनाय (राये) धनलाभाय च (विमोचन) हे दुःखाद्विमोचक ! (शिक्ष) शाधि ॥१५॥