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जु॒षेथां॑ य॒ज्ञमि॒ष्टये॑ सु॒तं सोमं॑ सधस्तुती । इन्द्रा॑ग्नी॒ आ ग॑तं नरा ॥

English Transliteration

juṣethāṁ yajñam iṣṭaye sutaṁ somaṁ sadhastutī | indrāgnī ā gataṁ narā ||

Pad Path

जु॒षेथा॑म् । य॒ज्ञम् । इ॒ष्टये॑ । सु॒तम् । सोम॑म् । स॒ध॒स्तु॒ती॒ इति॑ सधऽस्तुती । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । आ । ग॒त॒म् । न॒रा॒ ॥ ८.३८.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:38» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:5» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

अब ब्राह्मण और क्षत्रियों के कर्म दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्राग्नी) हे क्षत्रिय तथा हे ब्राह्मण ! यद्वा हे राजन् तथा हे दूत ! आप दोनों (तस्य+बोधतम्) उस इस बात का पूर्ण रीति से ध्यान रक्खें, जानें, मानें और मनवावें (हि) क्योंकि आप दोनों (यज्ञस्य) सकल शुभकर्मों के (ऋत्विजा+स्थः) सम्पादक ऋत्विक् हैं (सस्नी) शुद्ध हैं और (वाजेषु) युद्ध और ज्ञानसम्बन्धी (कर्मसु) कर्मों में अधिकारी हैं। अतः इस ईश्वरीय बात को सदा ध्यान में रक्खें ॥१॥
Connotation: - इन्द्र का कर्म राज्यशासन है, अतः इससे यहाँ क्षत्रिय का ग्रहण है और अग्नि का कर्म यज्ञशासन है, अतः इससे ब्राह्मण का ग्रहण है अथवा राजा और दूत, क्योंकि अग्नि को दूत कहा है। ब्राह्मण, क्षत्रिय को उचित है कि वे कदापि भी ईश्वरीय आज्ञाओं का तिरस्कार न करें ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अथ ब्रह्मक्षत्रकर्माणि निर्दिश्यन्ते।

Word-Meaning: - हे इन्द्राग्नी=हे क्षत्रियब्राह्मणौ यद्वा राजदूतौ ! इन्द्रः क्षत्रियोपलक्षको राज्यशासकत्वात्। अग्निर्ब्राह्मणोपलक्षकः कर्मशासकत्वात्। तस्य+बोधतम्=तदेतद्वस्तु। बोधतम्=युवां जानीतम्। हि=यतः। युवं यज्ञस्य। ऋत्विजा=ऋत्विजौ स्थः। पुनः सस्नी=शुद्धौ। पुनः वाजेषु कर्मसु=युद्धसम्बन्धिषु ज्ञानसम्बन्धिषु च कर्मसु। अधिकृतौ स्थः ॥–१॥