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कन्नव्यो॑ अत॒सीनां॑ तु॒रो गृ॑णीत॒ मर्त्य॑: । न॒ही न्व॑स्य महि॒मान॑मिन्द्रि॒यं स्व॑र्गृ॒णन्त॑ आन॒शुः ॥

English Transliteration

kan navyo atasīnāṁ turo gṛṇīta martyaḥ | nahī nv asya mahimānam indriyaṁ svar gṛṇanta ānaśuḥ ||

Pad Path

कत् । नव्यः॑ । अ॒त॒सीना॑म् । तु॒रः । गृ॒णी॒त॒ । मर्त्यः॑ । न॒ह् । नु । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मान॑म् । इ॒न्द्रि॒यम् । स्वः॑ । गृ॒णन्तः॑ । आ॒न॒शुः ॥ ८.३.१३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:3» Mantra:13 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:27» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:13


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SHIV SHANKAR SHARMA

फिर महिमा की स्तुति कही जाती है।

Word-Meaning: - (अतसीनाम्) सततगामिनी स्तुतियों के (तुरः) प्रेरयिता (मर्त्यः) मरणशील (नव्यः) नूतन (कत्) कौन स्तोता (गृणीत) इन्द्र की स्तुति कर सकता है। क्योंकि वर्तमान काल के मनुष्य अल्पज्ञ होने के कारण इन्द्र की स्तुति करने में समर्थ नहीं। जब (नु) पूर्वकाल के विद्वान् भी (अस्य) इसकी (महिमानम्) महिमा को (न+हि+आनशुः) न पा सके, तो कैसे महिमा (इन्द्रियम्) जो इन्द्रिय द्वारा मालूम होती है। जिसकी महिमा को ये इन्द्रियसमूह प्रकाशित कर रहे हैं। पुनः (स्वर्गणन्तः) जो सुख का प्रकाश कर रहा है अर्थात् जो यह सम्पूर्ण जगत् सुखमय हो रहा है, वह उस परमात्मा का ही महत्त्व है। उसकी महिमा को कौन गा सकता है ॥१३॥
Connotation: - ईश की महिमा अनन्त है। पूर्व विद्वान् भी उसके अन्त तक न पहुँचे। अद्यतन भी अन्त तक न पहुँचेंगे। हे महादेव ! स्वमति के अनुसार आपकी स्तुति में सब प्रवृत्त होते हैं। तदनुसार मैं भी आपकी स्तुति करता हूँ। हे ईश ! मेरे आशय को जानकर प्रसन्न हो ॥१३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अतसीनां) निरन्तर होनेवाली स्तुतियों का (तुरः) करनेवाला (नव्यः) नवीन शिक्षित (मर्त्यः) मनुष्य (कत्, गृणीत) कौन कहकर समाप्त कर सकता (अस्य) इस कर्मयोगी की (इन्द्रियं, महिमानं) राज्य-महिमा को (स्वः, गृणन्तः) सुख से चिरकाल तक वर्णन करते हुए विद्वानों ने भी (नहि, नु) नहीं ही (आनशुः) पार पाया है ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि बड़े-बड़े विद्वान् पुरुष जो निरन्तर सूक्ष्म पदार्थों के जानने में प्रवृत्त रहते हैं, उन्होंने भी कर्मयोगी की महिमा का पार नहीं पाया, तब नवशिक्षित मनुष्य उसकी महिमा को क्या कह सकता है, क्योंकि कर्मयोगी की अनन्त कलायें हैं, जिनकी इयत्ता को विद्वान् पुरुष अनन्तकाल तक भी नहीं जान सकता ॥१३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनर्महिमा स्तूयते।

Word-Meaning: - अतसीनाम्=अतन्तीनाम्−सततगामिनीनां स्तुतीनाम्। तुरः=प्रेरयिता। मर्त्यः=मरणधर्मा। नव्यः=अभिनव इदानींतनः। कत्=को नाम स्तोता। गृणीत=इन्द्रं स्तुयात्। अल्पबुद्धयोऽद्यतना इन्द्रं स्तोतुं न शक्नुवन्तीत्यर्थः। गॄ शब्दे। नु=पुरा पूर्वस्मिन्नपि काले विद्यमाना विद्वांसः। अस्य महिमानम् नहि। आनशुः=न खलु प्राप्नुवन्। कीदृशं महिमानम्। इन्द्रियम्=इन्द्रियप्रत्यक्षम्। पुनः। स्वर्गृणन्तः=स्वर्गृणन्तम्=स्वः सुखं गृणन्तम्=सुखस्य कथयितारम्=सुखप्रकाशमित्यर्थः ॥१३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अतसीनां) निरन्तरं क्रियमाणानां स्तुतीनां (तुरः) प्रेरकः (मर्त्यः) मनुष्यः (नव्यः) नव्यशिक्षितः (कत्, गृणीत) कः कथयित्वा समापयेत् (अस्य) अस्य कर्मयोगिणः (इन्द्रियं) इन्द्रसम्बन्धिनं (महिमानं) प्रतापं (स्वः, गृणन्तः) सुखेन चिरं वर्णयन्तः (नहि, नु) नैव (आनशुः) पारयामासुः ॥१३॥