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पिबा॑ सु॒तस्य॑ र॒सिनो॒ मत्स्वा॑ न इन्द्र॒ गोम॑तः । आ॒पिर्नो॑ बोधि सध॒माद्यो॑ वृ॒धे॒३॒॑ऽस्माँ अ॑वन्तु ते॒ धिय॑: ॥

English Transliteration

pibā sutasya rasino matsvā na indra gomataḥ | āpir no bodhi sadhamādyo vṛdhe smām̐ avantu te dhiyaḥ ||

Pad Path

पिबा॑अ॑ । सु॒तस्य॑ । र॒सिनः॑ । मत्स्व॑ । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । गोऽम॑तः । आ॒पिः । नः॒ । बो॒धि॒ । स॒ध॒ऽमाद्यः॑ । वृ॒धे॒ । अ॒स्मान् । अ॒व॒न्तु॒ । ते॒ । धियः॑ ॥ ८.३.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:3» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:25» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः परमदेव इन्द्र की प्रार्थना का आरम्भ करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! सर्वद्रष्टा परमात्मन् ! तू (रसिनः) रसवान्=तेरे आनन्द के अनुभव करनेवाले (सुतस्य) यज्ञ में अभिषिक्त हमारे आत्मा के आशय को (पिब) उत्कट इच्छा से देख=उस पर अनुग्रह कर। यद्वा (रसिनः) रसयुक्त (सुतस्य) यज्ञिय वस्तु के ऊपर (पिब) अनुग्रह कर। तथा (गोमतः) स्तुतिरूप वाणियों से युक्त (नः) हम उपासकों को (मत्स्व) आनन्दित कर। तथा (आपिः) निखिल सुखों का देनेवाला बन्धु होकर तू (नः+बोधि) हम उपासकों को ज्ञान-विज्ञान सिखा। जिस हेतु तू (सधमाद्यः) सांसारिक पदार्थों के साथ-२ हमको आनन्द देनेवाला है अथवा तू ही हमारा आनन्द्य, स्तुत्य और पूज्य है। इस हेतु (ते+धियः) तेरे विज्ञान और कर्म (वृधे) अभ्युदय के लिये (अस्मान्+अवन्तु) हमारी रक्षा करें ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! ईश्वर तुम्हारा सखा, तुमको मित्रवत् नाना उपायों से बचाता और प्राकृत दृष्टान्त से समझाता है, अतः उसकी आज्ञा पालो, तब ही वह अनुग्रह करेगा ॥१॥
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ARYAMUNI

अब गोरसों द्वारा कर्मयोगी का सत्कार करते हुए अपनी रक्षा की प्रार्थना करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे कर्मयोगिन् ! (नः) हमारे (गोमतः) गोरससम्बन्धी पदार्थयुक्त (रसिनः, सुतस्य) आस्वादयुक्त सम्यक्, संस्कृत रसों को (पिब, मत्स्व) पियें और पीकर तृप्त हों (सधमाद्यः) साथ-साथ रसपान से आह्लाद उत्पन्न कराने योग्य (आपिः) हमारे सम्बन्धी आप (नः) हमारी (वृधे) वृद्धि के लिये (बोधि) सर्वदा जागृत रहें (ते) आपकी (धियः) बुद्धियें (नः) हमको (अवन्तु) सुरक्षित करें ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में याज्ञिक पुरुषों की ओर से कर्मयोगी के प्रति यह प्रार्थना कथन की गई है कि हे परमैश्वर्य्यसम्पन्न कर्मयोगिन् ! आप हमारे सुसंस्कृत सिद्ध किये हुए इन दूध, दधि तथा घृतादि गोरसों को पानकर तृप्त हों और हम सम्बन्धी जनों की वृद्धि के लिये आप सदैव प्रयत्न करते रहें अर्थात् विद्या तथा ऐश्वर्य्यवृद्धि सम्बन्धी उपायों का आप सदा हमारे प्रति उपदेश करें, जिससे हम विद्वान् तथा ऐश्वर्य्यशाली हों, या यों कहो कि आपकी विशालबुद्धि सदैव हमारे हितचिन्तन में प्रवृत्त रहे, यह हमारी प्रार्थना है ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनरिन्द्रस्य प्रार्थनामारभते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र=इदं सर्वं पश्यतीतीन्द्रः=सर्वद्रष्टः परमात्मन् ! त्वम् ! रसिनः=रसवतो रसिकस्यानुरक्तस्य। सुतस्य=नियुक्तस्याभिषिक्तस्य। अस्माकमात्मन आशयमिति शेषः। पिब=उत्कटेच्छया पश्य=अनुगृहाण। यद्वा। यज्ञसम्बन्धिवस्तून्यनुगृहाण। तथा। गोमतः=इन्द्रियवतो। वाणीमतः स्तुतिमतो वा नोऽस्मान्। मत्स्व=मादय=आनन्दय। अत्र णिचो लोपः। पुनः। आपिः=आपयिता बन्धुभूतस्त्वम्। नो बोधि=नोऽस्मान्। बोधय=ज्ञानं विज्ञानञ्च प्रदेहि। पुनः। यतस्त्वम्। सधमाद्यः=सहमादयिता सहानन्दयिता सांसारिक- वस्तुभिर्हर्षयिताऽसि सहानन्द्यो वाऽस्माभिः। अतस्ते=तव। धियो=विज्ञानानि। वृधे=वर्धनाय=अभ्युदयाय। अस्मानवन्तु=रक्षन्तु प्राप्नुवन्तु वा ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ गव्यादिपदार्थैः सत्कृतः कर्मयोगी रक्षायै प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे कर्मयोगिन् ! (नः) अस्माकं (रसिनः) आस्वादवन्तं (गोमतः) गोसम्बन्धिपदार्थयुक्तं (सुतस्य) साधुसंस्कृतं (पिब, मत्स्व) पिब पीत्वा च तृप्नुहि (सधमाद्यः) सह मादयितव्यः (आपिः) बन्धुः (नः) अस्माकं (वृधे) वृद्धये (बोधि) जागृहि (ते) तव (धियः) बुद्धयः (नः) अस्मान् (अवन्तु) परिपालयन्तु ॥१॥