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अज्रे॑ चिदस्मै कृणुथा॒ न्यञ्च॑नं दु॒र्गे चि॒दा सु॑सर॒णम् । ए॒षा चि॑दस्माद॒शनि॑: प॒रो नु सास्रे॑धन्ती॒ वि न॑श्यतु ॥

English Transliteration

ajre cid asmai kṛṇuthā nyañcanaṁ durge cid ā susaraṇam | eṣā cid asmād aśaniḥ paro nu sāsredhantī vi naśyatu ||

Pad Path

अज्रे॑ । चि॒त् । अ॒स्मै॒ । कृ॒णु॒थ॒ । नि॒ऽअञ्च॑नम् । दुः॒ऽगे । चि॒त् । आ । सु॒ऽस॒र॒णम् । ए॒षा । चि॒त् । अ॒स्मा॒त् । अ॒शनिः॑ । प॒रः । नु । सा । अस्रे॑धन्ती । वि । न॒श्य॒तु॒ ॥ ८.२७.१८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:27» Mantra:18 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:34» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:18


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SHIV SHANKAR SHARMA

मननकर्ता जन सदा रक्षणीय है, यह इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! आप सब मिलकर (अस्मै) जो सदा ईश्वरीय विभूतियों के मनन में लगा हुआ है, उस इस विज्ञानी के लिये (अज्रे+चित्) सरल मार्ग में भी (न्यञ्चनम्+कृणुथ) नीचा न बनावें अथवा (अज्रे+चित्) जिस नगर में कोई नहीं जा सकता, वहाँ भी इसके गमन का मार्ग बनावें। (दुर्गे+चित्) अरण्य समुद्र आदि जो दुर्गमनीय स्थान हैं और राजकीय प्राकार आदि जो अगम्य स्थान हैं, वहाँ भी (सुसरणम्) इसका सुगमन (आ) अच्छे प्रकार करावें (एषा+अशनिः+चित्) यह ईश्वरीय वज्रादिक आयुध भी (अस्मात्) इस जन से (परः) दूर जाकर गिरे (नु) और पश्चात् (सा+अस्रेधन्ती) वह किसी की हिंसा न करती हुई अशनि (विनश्यतु) विनष्ट हो जाए ॥१८॥
Connotation: - विद्वानों से भी मननकर्ता पुरुष अधिक माननीय हैं, उनको सर्व बाधाओं से बचाना सबका कर्तव्य है, क्योंकि वे नूतन-२ विद्या प्रकाशित कर लोगों का महोपकार करते हैं ॥१८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

मननकर्ता जनो रक्षणीय इत्यनया दर्शयति।

Word-Meaning: - हे विद्वांसः ! यूयम्। अस्मै=मननकर्त्रे जनाय। अज्रे+चित्=ऋजुगमनेऽपि स्थाने। न्यञ्चनम्=नितरां शोभनगमनम्। कृणुथ=कुरुत। यद्वा “ज्रि अभिभवे” परैरनभिभवनीयेऽपि शत्रुनगरे। अस्मै। न्यञ्चनं कुरुत। दुर्गे+चित्। अस्य सुसरणम्। आकुरुत। एषा+चित्=ईश्वरीयाप्येषा। अशनिः=वज्रम्। अस्माज्जनात्। परः=परस्ताद्। भवतु। तु=पश्चात्। साशनिः। अस्रेधन्ती=अहिंसन्ती सती। विनश्यतु ॥१८॥