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त्वं हि सु॑प्र॒तूरसि॒ त्वं नो॒ गोम॑ती॒रिष॑: । म॒हो रा॒यः सा॒तिम॑ग्ने॒ अपा॑ वृधि ॥

English Transliteration

tvaṁ hi supratūr asi tvaṁ no gomatīr iṣaḥ | maho rāyaḥ sātim agne apā vṛdhi ||

Pad Path

त्वम् । हि । सु॒ऽप्र॒तूः । असि॑ । त्वम् । नः॒ । गोऽम॑तीः । इषः॑ । म॒हः । रा॒यः । सा॒तिम् । अ॒ग्ने॒ । अप॑ । वृ॒धि॒ ॥ ८.२३.२९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:23» Mantra:29 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:14» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:29


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SHIV SHANKAR SHARMA

प्रार्थना इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (अग्ने) हे सर्वाधार ! (त्वम्+हि) तू ही (सुप्रतूः+असि) उपासक जनों को विविध दान देनेवाला है, (त्वम्) तू (नः) हमको (गोमतीः) गवादि-पशुयुक्त (इषः) अन्नों को और (महः+रायः) महती सम्पत्तियों के (सातिम्) भाग को (अपावृधि) दे ॥२९॥
Connotation: - ईश्वर पर विश्वासकर प्रार्थना करे, तब अवश्य ही उसका फल प्राप्त होगा ॥२९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे शूरपते ! (त्वम्, हि) आप ही (सुप्रतूः, असि) सब सुन्दर पदार्थों के प्रदाता हैं (त्वम्, नः) आप ही मेरे लिये (गोमतीः, इषः) गवादियुक्त इष्ट पदार्थों को (महः, रायः) तथा महान् धन की (सातिम्) दानशक्ति को (अपवृधि) दें ॥२९॥
Connotation: - हे शूरवीर विद्वान् योद्धा ! आप ही उत्तमोत्तम पदार्थों और गौ तथा अश्वादि धनों के देनेवाले हैं अर्थात् आप ही दिव्यशक्ति और अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य से प्रजा को विभूषित करते हैं, अतएव आप हमारे यज्ञों में सदैव योग देकर हमें दानशील बनावें ॥२९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

प्रार्थनां दर्शयति।

Word-Meaning: - हे अग्ने ! त्वम्+हि=त्वमेव। सुप्रतूः+असि=स्तोतॄणां सुष्ठु धनादिप्रदातासि। गोमतीः=गवादियुक्ताः। इषः=अन्नानि। अपि च। महः=महतः। रायः=धनस्य। सातिम्=भागञ्च। अपावृधि=अपावृणु=प्रयच्छ ॥२९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे शूरपते ! (त्वम्, हि) त्वमेव (सुप्रतूः, असि) सुष्ठु प्रदातासि (त्वम्, नः) त्वं ह्यस्मभ्यम् (गोमतीः, इषः) गोयुक्तमिष्टम् (महः, रायः) महतो धनस्य (सातिम्) दानशक्तिम् (अपवृधि) प्रयच्छ ॥२९॥