Go To Mantra

यद्वा उ॑ वि॒श्पति॑: शि॒तः सुप्री॑तो॒ मनु॑षो वि॒शि । विश्वेद॒ग्निः प्रति॒ रक्षां॑सि सेधति ॥

English Transliteration

yad vā u viśpatiḥ śitaḥ suprīto manuṣo viśi | viśved agniḥ prati rakṣāṁsi sedhati ||

Pad Path

यत् । वै । ऊँ॒ इति॑ । वि॒श्पतिः॑ । शि॒तः । सुऽप्री॑तः । मनु॑षः । वि॒शि । विश्वा॑ । इत् । अ॒ग्निः । प्रति॑ । रक्षां॑सि । से॒ध॒ति॒ ॥ ८.२३.१३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:23» Mantra:13 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:13


Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

उसके गुण दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (यद्वै) जब (विश्पतिः) सम्पूर्ण प्रजाओं का अधिपति (शितः) सूक्ष्मकर्त्ता (अग्निः) सर्वान्तर्यामी परमात्मा (सुप्रीतः) सुप्रसन्न होकर (मनुषः+विशि) मनुष्य के स्थान में विराजमान होता है, (तदा) तब (विश्वा+इत्) सब ही (रक्षांसि) दुष्टों को (प्रतिषेधति) दूर कर देता है ॥१३॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! यदि दुर्जनों के दौर्जन्य का विध्वंस करना चाहते हो, तो उस परमदेव को अपने मन में स्थापित करो ॥१३॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विश्पतिः, शितः) प्रजाओं का पालक तीक्ष्णक्रियावाला वह (अग्निः) आग्नेय शस्त्रवेत्ता विद्वान् (यद्वा, उ) जब ही (सुप्रीतः) सुप्रसन्न होता है, तब (मनुषः, विशि) मनुष्य के गृह में (विश्वा, इत्, रक्षांसि) सकल राक्षसों को (प्रतिसेधति) निकाल देता है ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि जिस देश में अग्निसमान देदीप्यमान योद्धा प्रसन्नचित्त रहते हैं, वहाँ राक्षस दस्युओं का प्रवेश कदापि नहीं हो सकता, अतएव ईश्वर आज्ञा देता है कि हे वैदिक लोगो ! तुम रक्षोहण सूक्तों का पाठ करते हुए अपने क्षत्रियवर्ग की पुष्टि में सदैव दत्तचित्त रहो, ताकि राक्षससमुदाय देश में प्रबल न हो ॥१३॥
Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

तदीयगुणं दर्शयति।

Word-Meaning: - यद्वै=यदा खलु। विश्पतिः=विशां स्वामी। शितः=सूक्ष्मकर्त्ता। अग्निरीशः। सुप्रीतः सन्। मनुषः=मनुषस्य। विशि=निवेशने स्थाने। भवति। तदा। विश्वा+इत्=विश्वान्येव। रक्षांसि=दुष्टान्। प्रतिसेधति=हिनस्ति ॥१३॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विश्पतिः, शितः) प्रजानां पतिः अप्रसहनः (अग्निः) स आग्नेयशस्त्रवेत्ता (यद्वा, उ) यदा हि (सुप्रीतः) सुप्रसन्नो भवति, तदा (मनुषः, विशि) मनुष्यस्य वेश्मनि (विश्वा, इत्, रक्षांसि) सर्वाण्येव रक्षांसि (प्रतिसेधति) पृथक्करोति ॥१३॥