Word-Meaning: - (अजर) हे युवन् (अग्ने) ! शूरपते (तव, ते, बृहद्भाः) आपके अनेकों योद्धा (इन्धानासः) अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित देदीप्यमान (वृषणः, अश्वा इव) अश्वसदृश बलवान् (तविषीयवः) अपने प्रतिपक्षी भट को ढूँढते हुए विचरते हैं ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में यह वर्णन किया है कि वीरविद्यावेत्ता विद्वान् अग्निसमान देदीप्यमान होकर शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित हुए प्रतिदिन प्रतिपक्षी भटों को ढूँढते हैं अर्थात् परमात्मा आदेश करते हैं कि हे न्यायशील युद्धवेत्ता वीरो ! जब तुम अपने लक्ष्य का प्रतिक्षण पालन करोगे, तो तुम ही अपने वेधनरूप प्रतिपक्षी लक्ष्यों के ढूँढ़ने में तत्पर रहोगे और यदि तुम अपनी वीरविद्या का पालन न करोगे, तो तुम्ही अन्य लोगों से अथवा अन्य बधिकों से मृगादिकों के समान ढूँढ़े जाओगे, या यों कहो कि जो पुरुष अपने उद्देश्य को पूर्ण नहीं करता, वह दूसरे के तीक्ष्ण बाणों का लक्ष्य बनता है ॥११॥