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ईळि॑ष्वा॒ हि प्र॑ती॒व्यं१॒॑ यज॑स्व जा॒तवे॑दसम् । च॒रि॒ष्णुधू॑म॒मगृ॑भीतशोचिषम् ॥

English Transliteration

īḻiṣvā hi pratīvyaṁ yajasva jātavedasam | cariṣṇudhūmam agṛbhītaśociṣam ||

Pad Path

ईळि॑ष्व॑ । हि । प्र॒ती॒व्य॑म् । यज॑स्व । जा॒तऽवे॑दसम् । च॒रि॒ष्णुऽधू॑मम् । अगृ॑भीतऽशोचिषम् ॥ ८.२३.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:23» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

अग्नि के गुणों का अध्ययन कर्त्तव्य है, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (अग्निम्+ईडिष्व) अग्नि के गुण प्रकाशित करो (हि) निश्चय (प्रतीव्यम्) जो अग्नि सबका उपकारक है, (जातवेदसम्) जो सब भूतों में व्याप्त है, (यजस्व) उस अग्नि द्वारा यजन करो। पुनः वह अग्नि कैसा है, (चरिष्णुधूमम्) जिसका धूम चारों तरफ फैल रहा है, (अगृभीतशोचिषम्) जिसके तेज के तत्त्व से लोग परिचित नहीं हैं ॥१॥
Connotation: - वास्तव में हम लोग अग्नि के गुणों से सर्वथा अपरिचित हैं, इसलिये वेद में पुनः-२ अग्निगुणज्ञानार्थ उपदेश है ॥१॥
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ARYAMUNI

अब अग्नित्वधर्मवाले विद्वान् के गुण वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - हे याज्ञिक ! (प्रतीव्यम्) जो शत्रुओं के प्रति निरन्तर यात्रा करता है, ऐसे विद्वान् की (ईळिष्व, हि) निश्चय स्तुति करो और (जातवेदसम्) “जातं जातं वेत्ति इति जातवेदाः”=जो सकल प्राणिवर्ग को जानता है तथा (चरिष्णुधूमम्) जिसके शस्त्रास्त्रों का धूम आकाश में फैल रहा है (अगृभीतशोचिषम्) जिसके तेज की कोई धर्षणा नहीं कर सकता, ऐसे विद्वान् का (यजस्व) पूजन करो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा आज्ञा देते हैं कि हे याज्ञिक जनो ! जिन शूरवीरों के बाणों का धूम नभोमण्डल तक व्याप्त हो जाता है, जिनका जगत् में कोई भी अपमान नहीं कर सकता और जो अपने शौर्य्य-क्रौर्य्यादि तेज से सबको तिरस्कृत करते हैं, आप लोग उनका पूजन=सत्कार करो ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अग्निगुणाध्येतव्यतां दर्शयति।

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! अग्निमीडिष्व=अग्निगुणान् प्रकाशय। हि=निश्चयेन। प्रतीव्यम्=सर्वप्रत्युपकारकम्। जातवेदसम्। यजस्व। कीदृशम्। चरिष्णुधूमम्। पुनः। अगृभीतशोचिषम्= अगृह्यमाणतेजस्कम् ॥१॥
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ARYAMUNI

अथाग्नित्वधर्मवतो विदुषो गुणा वर्ण्यन्ते।

Word-Meaning: - हे याज्ञिक ! (प्रतीव्यम्) शत्रुषु प्रति गमनशीलम् (ईळिष्व, हि) स्तुह्येव (जातवेदसम्) यो जातं सर्वं प्राणिसमूहं वेत्ति तम् (चरिष्णुधूमम्) यस्य शस्त्रास्त्रसम्बन्धीधूमः चरिष्णुः (अगृभीतशोचिषम्) अग्राह्यप्रतापम् ईदृशं विद्वांसम् (यजस्व) पूजय ॥१॥