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उप॑ नो वाजिनीवसू या॒तमृ॒तस्य॑ प॒थिभि॑: । येभि॑स्तृ॒क्षिं वृ॑षणा त्रासदस्य॒वं म॒हे क्ष॒त्राय॒ जिन्व॑थः ॥

English Transliteration

upa no vājinīvasū yātam ṛtasya pathibhiḥ | yebhis tṛkṣiṁ vṛṣaṇā trāsadasyavam mahe kṣatrāya jinvathaḥ ||

Pad Path

उप॑ । नः॒ । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू । या॒तम् । ऋ॒तस्य॑ । प॒थिऽभिः॑ । येभिः॑ । तृ॒क्षिम् । वृ॒ष॒णा॒ । त्रा॒स॒द॒स्य॒वम् । म॒हे । क्ष॒त्राय॑ । जिन्व॑थः ॥ ८.२२.७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:22» Mantra:7 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:7


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः राजकर्त्तव्य कहते हैं।

Word-Meaning: - (वाजिनीवसू) बुद्धि, विद्या, वाणिज्या, यागक्रिया और अन्न आदि वाजिनी कहलाते हैं, वे ही धन हैं, जिनको वे वाजिनीवसु अर्थात् हे बुद्ध्यादिधन राजन् तथा अमात्यदल ! (ऋतस्य) सत्य के (पथिभिः) मार्गों से अर्थात् सत्यपथों का विस्तार करते हुए आप (नः) हम लोगों के (उप+यातम्) निकट आवें (वृषणा) हे धनादिवर्षाकारी ! (येभिः) जिन मार्गों से (त्रासदस्यवम्) दस्युविघातक (तृक्षिम्) सेनानायक को (महे) महान् (क्षत्राय) क्षत्रधर्म की वृद्धि के लिये (जिन्वथः) प्रसन्न रखते हैं ॥७॥
Connotation: - मन्त्रिदलसहित राजा सदा सत्यमार्ग की समुन्नति करता रहे और पक्षपात छोड़ सबकी भलाई के चिन्तन, वर्धन और रक्षण में तत्पर रहे ॥७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वाजिनीवसू) हे सेनारूप धनवाले ! (ऋतस्य, पथिभिः) यज्ञ के लिये सज्जित मार्गों से (नः, उपयातम्) आप हमारे समीप आवें (येभिः) जिन सुरक्षित मार्गों से (तृक्षिम्) गमनशील=उद्योगी मनुष्य (त्रासदस्यवम्) दस्युओं को भयभीत करनेवालों के कुल को (महे, क्षत्राय) महती समृद्धि के लिये (जिन्वथः) उत्साहित करते हैं ॥७॥
Connotation: - हे महती सेना से सुसज्जित न्यायाधीश तथा सेनाधीश ! आप कर्मजीवी पुरुषों की दस्युओं से रक्षा करनेवाले तथा सम्पूर्ण प्रजा को समृद्धिशाली बनानेवाले हैं। आप सम्पूर्ण प्रजा को उत्साहसम्पन्न करें, ताकि सब याज्ञिक कर्मों में प्रवृत्त होकर अपने कार्यों को विधिवत् पूर्ण करते हुए ऐश्वर्य्यशाली हों ॥७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनरपि राजकर्त्तव्यमाह।

Word-Meaning: - हे वाजिनीवसू ! बुद्धिर्विद्या वाणिज्या यागक्रिया अन्नमित्यादि वाजिनी। सैव वसूनि धनानि ययोस्तौ। युवाम्। ऋतस्य=सत्यस्य। पथिभिः=मार्गैः। सत्यस्य पथो विस्तारयन्तौ सन्तौ नोऽस्मान्। उपयातम्=उपगच्छतम्। हे वृषणा=वृषणौ=कामानां वर्षितारौ ! त्रासदस्यवम्= दस्युविघातकम्। तृक्षिम्=सेनानायकम्। महे=महते। क्षत्राय= क्षत्रधर्मवृद्ध्यै। येभिर्यैर्मार्गैः। जिन्वथः=प्रीणयथः ॥७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वाजिनीवसू) हे सेनाधनौ ! (ऋतस्य, पथिभिः) यज्ञार्थसज्जितमार्गैः (नः, उपयातम्) अस्मानागच्छतम् (वृषणा) हे कामानां वर्षितारौ (येभिः) येभिर्मार्गैः (तृक्षिम्) गमनशीलमुद्योगिनम् “तृक्ष गतौ भ्वा. प. से.” (त्रासदस्यवम्) त्रसदस्युसन्ततिम् (महे, क्षत्राय) महते ऐश्वर्याय (जिन्वथः) प्रीणयथः ॥७॥