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द॒श॒स्यन्ता॒ मन॑वे पू॒र्व्यं दि॒वि यवं॒ वृके॑ण कर्षथः । ता वा॑म॒द्य सु॑म॒तिभि॑: शुभस्पती॒ अश्वि॑ना॒ प्र स्तु॑वीमहि ॥

English Transliteration

daśasyantā manave pūrvyaṁ divi yavaṁ vṛkeṇa karṣathaḥ | tā vām adya sumatibhiḥ śubhas patī aśvinā pra stuvīmahi ||

Pad Path

द॒श॒स्यन्ता॑ । मन॑वे । पू॒र्व्यम् । दि॒वि । यव॑म् । वृके॑ण । क॒र्ष॒थः॒ । ता । वा॒म् । अ॒द्य । सु॒म॒तिऽभिः॑ । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ । अश्वि॑ना । प्र । स्तु॒वी॒म॒हि॒ ॥ ८.२२.६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:22» Mantra:6 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:6


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SHIV SHANKAR SHARMA

राज-कर्त्तव्य कहते हैं।

Word-Meaning: - (शुभस्पती+अश्विना) हे शुभ कर्मों के पालक राजन् तथा मन्त्रिदल ! आप स्वयं (मनवे) मनुष्यजाति को (दशस्यन्ता) उत्तमोत्तम शिक्षा या विद्या देते हुए उदाहरणार्थ (दिवि) व्यवहार के निमित्त (यवम्) यवक्षेत्र को (पूर्व्यम्) पूर्ण रीति से (वृकेण) हल द्वारा (कर्षथः) कर्षण करते हैं। अर्थात् यवादि अन्न के निमित्त खेतों में स्वयं हल चलाते हैं। ऐसे अनुग्रहकारी आप हैं। (ता) उन (वाम्) आप दोनों को (सुमतिभिः) सुन्दर बुद्धियों से अथवा शोभन स्तोत्रों से (प्रस्तुवीमहि) अच्छे प्रकार हम सब स्तुति करें ॥६॥
Connotation: - कभी-२ राजा और मन्त्रिदल भी अपने हाथ से हल चलावें। जिससे इतर प्रजाओं में भी खेती करने का उत्साह हो। अतएव वेद में हल चलाने की भी विधि लिखी है ॥६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शुभस्पती) हे दिव्यपदार्थों के रक्षक (अश्विना) सेनापति तथा सभाध्यक्ष ! आप (दिवि, पूर्व्यम्) जो द्युलोक में विद्यमान अनादि परमात्मा है, उसको (मनवे) ज्ञानार्थी के लिये (दशस्यन्ता) उपदेश करते हुए (वृकेण) लाङ्गलादि विकर्तनसाधन शक्तियों से (यवम्) यवादि अन्न को भी (कर्षथः) कृषि द्वारा उत्पन्न कराते हैं (ता, वाम्) ऐसे आपको (अद्य) इस समय आवश्यक कार्यसिद्धि के लिये (सुमतिभिः) सुन्दर स्तुतियों से (प्रस्तुवीमहि) अनुकूल करते हैं ॥६॥
Connotation: - हे प्रजाओं के रक्षक न्यायाधीश तथा सेनाधीश ! आप सर्वत्र परिपूर्ण परमात्मा पर पूर्ण श्रद्धा रखनेवाले तथा उसका प्रजाओं में उपदेश करनेवाले और अन्नादि आवश्यक पदार्थों से प्रजा को संतुष्ट रखनेवाले हैं, आपकी हम स्तुतियों द्वारा प्रार्थना करते हैं कि आप हमारे अनुकूल हों, जिससे सब याज्ञिक कार्य्य निर्विघ्न पूर्ण हों ॥६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

राजकर्तव्यमाह।

Word-Meaning: - हे शुभस्पती=शुभानां कर्मणां पालकौ। अश्विना=राजानौ ! युवां स्वयमेव। मनवे=मनुर्मनुष्यजातिः। जातावेकवचनम्। तस्मै। मनवे=मनुष्यजात्यै। दशस्यन्ता=उत्तमोत्तमां शिक्षां विद्यां वा ददतौ। उदाहरणार्थम्। दिवि=व्यवहारनिमित्ते। वृकेण=लाङ्गलेन। यवम्=यवक्षेत्रम्। कर्षथः=क्षेत्रस्य विलेखनं कुरुथः। ता=तौ। वाम्=युवाम्। अद्य। सुमतिभिः= शोभनस्तोत्रैः शोभनबुद्धिभिर्वा। प्रस्तुवीमहि ॥६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शुभस्पती) हे कान्तपदार्थरक्षकौ (अश्विना) सेनापतिसभाध्यक्षौ ! यौ (दिवि, पूर्व्यम्) द्युलोके योऽनादिः परमात्मा तम् (मनवे) ज्ञानार्थिते (दशस्यन्ता) उपदिशन्तौ (वृकेण) लाङ्गलेन (यवम्, कर्षथः) यवाद्यन्नं कर्षित्वोत्पादयथः (ता, वाम्) तौ युवाम् (अद्य) इदानीमावश्यके कर्मणि (सुमतिभिः) शोभनस्तुतिभिः (प्रस्तुवीमहि) प्रकर्षेण स्तुमहे ॥६॥