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यु॒वो रथ॑स्य॒ परि॑ च॒क्रमी॑यत ई॒र्मान्यद्वा॑मिषण्यति । अ॒स्माँ अच्छा॑ सुम॒तिर्वां॑ शुभस्पती॒ आ धे॒नुरि॑व धावतु ॥

English Transliteration

yuvo rathasya pari cakram īyata īrmānyad vām iṣaṇyati | asmām̐ acchā sumatir vāṁ śubhas patī ā dhenur iva dhāvatu ||

Pad Path

यु॒वः । रथ॑स्य । परि॑ । च॒क्रम् । ई॒य॒ते॒ । ई॒र्मा । अ॒न्यत् । वा॒म् । इ॒ष॒ण्य॒ति॒ । अ॒स्मान् । अच्छ॑ । सु॒ऽम॒तिः । वा॒म् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ । आ । धे॒नुःऽइ॑व । धा॒व॒तु॒ ॥ ८.२२.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:22» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

समय-२ पर प्रजाओं को उचित है कि स्वगृह पर राजा और मन्त्रिदल को बुलावें, इसकी शिक्षा देते हैं।

Word-Meaning: - हे राजन् तथा मन्त्रिदल ! आप दोनों महाप्रतापी हैं, क्योंकि (युवोः) आपके (रथस्य) रथ का एक ही (चक्रम्) चक्र (परि) प्रजाओं में सर्वत्र (ईयते) जाता है (अन्यत्) और दूसरा चक्र (वाम्) आपकी ही (इषण्यति) सेवा करता है अर्थात् आपके अर्धपरिश्रम से ही प्रजाओं का पालन हो रहा है। आप कैसे हैं, (ईर्मा) कार्य्य जानकर वहाँ-२ सेनादिकों को भेजनेवाले। (शुभस्पती) हे शुभकर्मों या जलों के रक्षको ! जिस हेतु आप शुभस्पति हैं, अतः (धेनुः+इव) वत्स के प्रति नवप्रसूता गौ जैसे (वाम्) आपकी (सुमतिः) शोभनमति (अस्मान्+अच्छ) हम लोगों की ओर (आधावतु) दौड़ आवे ॥४॥
Connotation: - जो अच्छे नीतिनिपुण और वीरत्वादिगुणयुक्त राजा और मन्त्रिदल हों, उनको ही सब प्रजा मिलकर सिंहासन पर बैठावें ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शुभस्पती) हे अन्नादि पदार्थों द्वारा पालक सेनाधीश तथा न्यायाधीश ! (युवोः) आपके (रथस्य) यन्त्रयान का (चक्रम्) एक चक्र तो (परीयते) निरन्तर घूमता हुआ चलता है और (अन्यत्) दूसरा ऊपर का चक्र (ईर्मा, वाम्) स्थिति=ठहरना, चालन=चलाना, विचालन=तिरछा फेरना इत्यादि क्रियाओं के प्रेरक आपके पास ही (इषण्यति) बना रहता है (सुमतिः) वह सुन्दर ज्ञानसाध्य आपका रथ (अस्मान्, अच्छ) हमारे अभिमुख (धेनुरिव) जिस प्रकार गौ वत्स के अभिमुख वेग से आती है, उसी प्रकार (आधावतु) शीघ्र आवे ॥४॥
Connotation: - इसी अर्थ का महर्षि श्रीस्वामी दयानन्दसरस्वतीजी ने “न्यघ्न्यस्य मूर्धनि०” ऋग्० १।३०।१९। मन्त्र के भाष्य में प्रतिपादन किया है, विशेषाभिलाषी वहाँ देख लें। भाव यह है कि हे अन्न द्वारा पालक न्यायाधीश तथा सेनाधीश ! आपका उपर्युक्त प्रकार का यान, जो विचित्र कलाओं से सुसज्जित है, उसमें आरूढ़ हुए आप शीघ्र ही हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर सब बाधाओं को दूर करते हुए यज्ञ को पूर्ण करें ॥४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

समये समये राजानौ प्रजाभिः स्वीये गृहे सत्कारार्थमाहातव्यमिति शिक्षते।

Word-Meaning: - हे राजानौ ! युवां महाप्रतापिनौ वर्तेथे। यतः। युवोः=युवयोः। रथस्य। एकमेव चक्रम्। परि=परितः। सर्वत्र प्रजानां मध्ये। ईयते=गच्छति। अन्यच्चक्रम्। वाम्=युवामेव। इषण्यति= सेवते। युवयोरर्द्धपरिश्रमेणैव प्रजापालनं भवतीति भावः। कथंभूतौ युवाम्। ईर्मा=ईर्मौ=कार्य्यं ज्ञात्वा तत्र तत्र सेनादीनां प्रेरकौ। हे शुभस्पती=शुभस्य जलस्य शुभकर्मणो वा पालकौ। वाम्=यतो युवां शुभस्पती। अतः। वाम्=युवयोः। सुमतिः=कल्याणी मतिः। अस्मान्। अच्छा= अभिमुखमाधावतु=आगच्छतु। अत्र दृष्टान्तः। धेनुरिव=यथा नूतनप्रसूता गौर्वत्सं प्रति धावति तद्वत् ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शुभस्पती) हे अन्नादिपदार्थानां रक्षकौ सेनाधीशन्यायाधीशौ ! (युवोः, रथस्य) युवयोर्यानस्य (चक्रम्, परीयते) एकं चक्रं परितो भ्राम्यति (अन्यत्) द्वितीयं च (ईर्मा, वाम्) स्थितिचालन विचालनाद्यर्थं प्रेरकौ युवाम् (इषण्यति) उपतिष्ठते (सुमतिः) स सुज्ञानसाध्यो रथः (अस्मान्, अच्छ) अस्मदभिमुखम् (धेनुरिव) गौर्यथा वत्समभि तथा (आधावतु) आप्रपततु ॥४॥