Go To Mantra

यदध्रि॑गावो॒ अध्रि॑गू इ॒दा चि॒दह्नो॑ अ॒श्विना॒ हवा॑महे । व॒यं गी॒र्भिर्वि॑प॒न्यव॑: ॥

English Transliteration

yad adhrigāvo adhrigū idā cid ahno aśvinā havāmahe | vayaṁ gīrbhir vipanyavaḥ ||

Pad Path

यत् । अध्रि॑ऽगावः । अध्रि॑गू॒ इत्यध्रि॑ऽगू । इ॒दा । चि॒त् । अह्नः॑ । अ॒श्विना॑ । हवा॑महे । व॒यम् । गीः॒ऽभिः । वि॒प॒न्यवः॑ ॥ ८.२२.११

Rigveda » Mandal:8» Sukta:22» Mantra:11 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:7» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:11


Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः वही विषय आ रहा है।

Word-Meaning: - (अध्रिगू) हे असमर्थरक्षक (अश्विना) राजन् तथा मन्त्रिन् ! (यद्) यद्यपि हम (अध्रिगावः) शिथिलेन्द्रिय हैं, तथापि (विपन्यवः) आपके गुणों के गायक हैं, इस हेतु (वयम्) हम (गीर्भिः) वचनों से (अह्नः) दिन के (इदा+चित्) इसी समय प्रातःकाल आपको (हवामहे) पुकारते हैं, आप हम लोगों की रक्षा के लिये यहाँ आवें ॥११॥
Connotation: - जब-२ राजवर्ग प्रजाहित कार्य्य करें, तब-२ वह प्रजा द्वारा अभिनन्दनीय हैं ॥११॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अध्रिगू, अश्विना) हे शीघ्रगामी सेनाधीश वा न्यायाधीश (यत्) जो आपके प्रयत्न से (अध्रिग्रावः) शीघ्रगतिवाले हृष्ट-पुष्ट होकर (विपन्यवः) आपकी स्तुति करते हुए (वयम्) हम सब याज्ञिक (अह्नः, इदा, चित्) दिन के प्रथमभाग में अर्थात् सबसे पहिले ही (गीर्भिः) अनेक प्रार्थना-शब्दों से आपका (हवामहे) आह्वान करें ॥११॥
Connotation: - अनेक प्रकार की ओषधियों और अपने उद्योग से सम्पूर्ण प्रजाजनों को हृष्ट-पुष्ट तथा कार्य्य करने में शीघ्रगामी बनानेवाले न्यायाधीश तथा सेनाधीश ! हम सब याज्ञिक पुरुष स्तुतियों द्वारा आपको आह्वान करते हैं, आप यज्ञसदन में आकर हमारे कष्टों को निवृत्त करते हुए यज्ञ के पूर्ण होने में योग दें ॥११॥
Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदनुवर्तते।

Word-Meaning: - हे अध्रिगू=आत्मानं धर्तुं पोषयितुमसमर्था अध्रयो निरालम्बास्तान् प्रति यौ गच्छतस्तौ। अध्रिगू=असमर्थरक्षकौ। हे अश्विना=अश्विनौ राजानौ ! यद्=यद्यपि। वयम्। अध्रिगावः=अध्रयोऽसमर्था गाव इन्द्रियाणि येषां ते अध्रिगावः शिथिलेन्द्रियास्तथापि। युवयोः। विपन्यवः=स्तुतिकारकाः। अतो वयम्। गीर्भिर्वचनैः। अह्नः=दिवसस्य। इदाचित्= इदानीमेव=प्रातःकाले एव। युवाम्। हवामहे=आह्वयामः ॥११॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अध्रिगू, अश्विना) हे अधृतगमनौ सेनाधीशन्यायाधीशौ ! (यत्) यतः भवदुपायैः (अध्रिगावः) शीघ्रगामिनः सन्तः (विपन्यवः) स्तुतिं कर्तारः (वयम्) वयं याज्ञिकाः (अह्नः, इदा, चित्) दिवसस्य प्रारम्भे हि (गीर्भिः) स्तुतिवाग्भिः (हवामहे) आह्वयामः ॥११॥