Word-Meaning: - (अश्वपते) हे अपने मण्डल में अश्वों की वृद्धि करनेवाले (गोपते) तथा गौओं की वृद्धि करनेवाले (उर्वरापते) सर्व प्रकार के सस्य से पूर्ण पृथ्वी के सम्पादक (सोमपते) सोमयाग के रक्षक सेनापति ! (इमे, इन्दवः) ये दिव्य आपके उपभोगयोग्य पदार्थ हम लोगों ने सिद्ध किये हैं, इससे (आयाहि) उनका सेवन करने के लिये आप आवें और (सोमम्, पिब) सोमरस का पान करें ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में सेनापति का सत्कार कथन किया है कि जब वह सेनाध्यक्ष अपनी रक्षाओं से पृथ्वी को गौ, अश्वपूर्ण तथा सस्यशालिनी कर देता है, तब सब प्रजाजन बड़े हर्षपूर्वक सत्कार करते हुए उसको आह्वान करके सम्मानित करते हैं अर्थात् सोमरसादि उत्तमोत्तम विविध पदार्थों से उसका सत्कार करते हुए अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं, ताकि उनके सोमयाग * में कोई विघ्न न हो ॥३॥ *चारों वेदों में सोम नाम से जिन-२ मन्त्रों में परमात्मा की स्तुति की गई है, उन मन्त्रों से जो याग किया जाता है अथवा सोमरसपानार्थ जो याग किया जाता है, उसका नाम ‘सोमयाग’ है॥