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चित्र॒ इद्राजा॑ राज॒का इद॑न्य॒के य॒के सर॑स्वती॒मनु॑ । प॒र्जन्य॑ इव त॒तन॒द्धि वृ॒ष्ट्या स॒हस्र॑म॒युता॒ दद॑त् ॥

English Transliteration

citra id rājā rājakā id anyake yake sarasvatīm anu | parjanya iva tatanad dhi vṛṣṭyā sahasram ayutā dadat ||

Pad Path

चित्रः॑ । इत् । राजा॑ । रा॒ज॒काः । इत् । अ॒न्य॒के । य॒के । सर॑स्वतीम् । अनु॑ । प॒र्जन्यः॑ऽइव । त॒तन॑त् । हि । वृ॒ष्ट्या । स॒हस्र॑म् । अ॒युता॑ । दद॑त् ॥ ८.२१.१८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:21» Mantra:18 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:18


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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वर ही सर्वशासक है, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (चित्रः+इत्) आश्चर्यजनक परमात्मा ही (राजा) सबका शासक है (सरस्वतीम्+अनु) नदी के तट पर रहनेवाले (यके+मन्यके) जो अन्यान्य मनुष्य और राजा हैं, वे (राजकाः+इत्) ईश्वर के आधीन ही राजा हैं, (वृष्ट्या+पर्जन्यः+इव) जैसे वृष्टि से मेघ, वैसे ही वह ईश्वर (सहस्रम्) सहस्रों (अयुता) और अयुतों धन (ददत्) देता हुआ (ततनत्) जगत् का विस्तार करता है ॥१८॥
Connotation: - बहुत अज्ञानी जन राजा और नदी आदि को धनदाता मान पूजते हैं, वेद इसका निषेध करता है ॥१८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (चित्रः, इत्, राजा) जो अनेक राजाओं में से चयन किया जाता है, वह सम्राट् ही यथार्थतया राजा है (अन्यके) और सब (यके, सरस्वतीम्, अनु) जो इसकी आज्ञा के अनुसार करते हैं, वे सब (राजकाः, इत्) अल्प=साधारण राजा ही हैं (हि) क्योंकि वह चित्र=सम्राट् ही (सहस्रम्, अयुता, ददत्) सहस्रों तथा सभी प्रकार के पदार्थों को देता हुआ (वृष्ट्या, पर्जन्यः, इव) वृष्टि द्वारा मेघ के समान (ततनत्) अपनी प्रजाओं को बढ़ाता है ॥१८॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि सम्राट् होना किसी कुलविशेष अथवा किसी व्यक्तिविशेष पर निर्भर नहीं किन्तु अनेक राजाओं में से जिस योग्य राजा को प्रजाजन स्वीकृत करें, वही सम्राट् प्रजाओं का पालक हो सकता है, क्योंकि साम्राज्यधर्म में निमित्त शौर्यादि गुण ही होते हैं, व्यक्तिविशेष नहीं। ऐसे चयन किये हुए अर्थात् चुने हुए सम्राट् के राष्ट्र में सब अल्प राजा तथा प्रजा उत्साहसहित अपने कार्य्यों को सिद्ध करते हुए उसकी सहायता करते हैं ॥१८॥ यह इक्कीसवाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वर एव सर्वशासक इति दर्शयति।

Word-Meaning: - चित्रः+इत्=आश्चर्यः परमात्मैव। राजा=सर्वेषां शासकः। सरस्वतीमनु=सरस्वत्यास्तीरे। यके=ये। अन्यके=अन्ये जनाः। सन्ति। ते। राजकाः+इत्= ईश्वराधीना एव। हि=यतः। वृष्ट्या पर्जन्य इव। सहस्रम्=सहस्रसंख्याकम्। अयुता=अयुतानि धनानि। ददत्=यच्छन्। ईश्वरः। ततनत्=विस्तारयति ॥१८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (चित्रः, इत्, राजा) अनेकेषु यश्चीयते जनैः स सम्राडेव राजा याथार्थ्येन राजा भवति (अन्यके, राजकाः, इत्) अन्ये च अल्पा एव राजानः (यके, सरस्वतीम्, अनु) ये च तस्य वाचमनुसृत्य व्यवहरन्ति, चित्रस्तु (सहस्रम् अयुता, ददत्) सहस्रं लक्षं च प्रजाभ्यो ददत् (वृष्ट्या, पर्जन्य इव) वृष्ट्या मेघो यथा तथा (हि) यतः (ततनत्) प्रजाः वर्धयति अतः ॥१८॥ इत्येकविंशतितमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥