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मर्त॑श्चिद्वो नृतवो रुक्मवक्षस॒ उप॑ भ्रातृ॒त्वमाय॑ति । अधि॑ नो गात मरुत॒: सदा॒ हि व॑ आपि॒त्वमस्ति॒ निध्रु॑वि ॥

English Transliteration

martaś cid vo nṛtavo rukmavakṣasa upa bhrātṛtvam āyati | adhi no gāta marutaḥ sadā hi va āpitvam asti nidhruvi ||

Pad Path

मर्तः॑ । चि॒त् । वः॒ । नृ॒त॒वः॒ । रु॒क्म॒ऽव॒क्ष॒सः॒ । उप॑ । भ्रा॒तृ॒ऽत्वम् । आ । अ॒य॒ति॒ । अधि॑ । नः॒ । गा॒त॒ । म॒रु॒तः॒ । सदा॑ । हि । वः॒ । आ॒पि॒ऽत्वम् । अस्ति॑ । निऽध्रु॑वि ॥ ८.२०.२२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:20» Mantra:22 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:40» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:22


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः वही विषय आ रहा है।

Word-Meaning: - (नृतवः) हे प्रजाओं की रक्षा करने में नाचनेवाले (रुक्मवक्षसः) हे सुवर्णभूषणभूषित वक्षस्थल सैन्यजनों ! (मर्तः+चित्) साधारण जन भी (वः) आपके साथ (भ्रातृत्वम्+उप+आयति) भ्रातृत्व प्राप्त करते हैं, इस कारण (नः) हम प्रजाओं को (अधि+गात) अच्छे प्रकार यथोचित उपदेश देवें। (मरुतः) हे मरुद्गण (हि) जिस कारण (वः) आपका (आपित्वम्) बन्धुत्व (सदा) सदा (निध्रुवि+अस्ति) निश्चल है ॥२२॥
Connotation: - सैनिकजन सर्वप्रिय होवें और यथोचित कर्त्तव्य लोगों को समझाया करें ॥२२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (नृतवः) हे अश्वों को नचानेवाले (रुक्मवक्षसः) सुवर्ण से भूषित हृदयवाले वीरो ! (मर्तः, चित्) साधारण मनुष्य भी (वः) आपके (उपभ्रातृत्वम्) मैत्रीभाव को (आयति) प्राप्त होता है, इससे (मरुतः) हे शत्रुनाशक वीरो ! (नः) हमको (सदा, हि) आप सदैव ही (उपगात) प्रशंसनीय बनावें (वः, आपित्वम्) क्योंकि आपका सम्बन्ध (निध्रुवि, अस्ति) अत्यन्त दृढ़ कार्य में होता है अर्थात् अपने कार्य को दृढ़ करनेवाला आपसे सम्बन्ध करता है ॥२२॥
Connotation: - हे शूरवीरो योद्धाओ ! आप शत्रुनाशक तथा साधारण पुरुषों से भी मित्रता करनेवाले हैं, आपके आश्रित सब मनुष्य अपने स्व-२ कार्य्यों को पूर्ण करते हैं, या यों कहो कि सुवर्ण से विभूषित वीरों की मैत्री पुरुष को तेजस्वी बनाती है और सुवर्ण के आभूषण धारण करना उन्हीं वीरों को देदीप्यमान करता है, भीरु तथा कायर पुरुषों का ग्रीवास्थ सुवर्ण भी एक प्रकार का भार ही होता है ॥२२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदनुवर्त्तते।

Word-Meaning: - हे नृतवः प्रजायां रक्षणे नृत्यन्तः ! हे रुक्मवक्षसः=रुक्मानि=आरोचमानानि सुवर्णमयानि भूषणानि वक्षःसु येषां ते ! मर्तश्चित्=साधारणमनुष्योऽपि। वः=युष्माकम्। भ्रातृत्वम्। उपायति=प्राप्नोति। अतः हे मरुतः ! नोऽस्मान्। अधिगात−यथोचितमुपदिशत। हि=यतः। वः=युष्माकम्। आपित्वम्। निध्रुवि=निश्चलमस्ति ॥२२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (नृतवः) हे अश्वानां नर्तकाः (रुक्मवक्षसः) सुवर्णभूषितहृदयाः ! (मर्तः, चित्) साधारणजनोऽपि (वः) युष्माकम् (उपभ्रातृत्वम्) सखित्वम् (आयति) आगच्छति (मरुतः) हे वीराः ! (नः) अस्मान् (सदा, हि) शश्वद्धि (उपगात) प्रशस्यान् कुरुत (वः, आपित्वम्) युष्माकं मैत्री (निध्रुवि, अस्ति) दृढे कर्मणि भवति ॥२२॥