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ये चार्ह॑न्ति म॒रुत॑: सु॒दान॑व॒: स्मन्मी॒ळ्हुष॒श्चर॑न्ति॒ ये । अत॑श्चि॒दा न॒ उप॒ वस्य॑सा हृ॒दा युवा॑न॒ आ व॑वृध्वम् ॥

English Transliteration

ye cārhanti marutaḥ sudānavaḥ sman mīḻhuṣaś caranti ye | ataś cid ā na upa vasyasā hṛdā yuvāna ā vavṛdhvam ||

Pad Path

ये । च॒ । अर्ह॑न्ति । म॒रुतः॑ । सु॒ऽदान॑वः । स्मत् । मी॒ळ्हुषः॑ । चर॑न्ति । ये । अतः॑ । चि॒त् । आ । नः॒ । उप॑ । वस्य॑सा । हृ॒दा । युवा॑नः । आ । व॒वृ॒ध्व॒म् ॥ ८.२०.१८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:20» Mantra:18 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:39» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:18


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी विषय की आवृत्ति है।

Word-Meaning: - (मरुतः) हे सैनिकजनों ! आप (मीढुषः) सुख के देनेवाले हैं। उन सुख देनेवाले (मीढुषः+मरुतः) सैनिकजनों को (ये च+अर्हन्ति) जो जन आदर करते हैं और (ये+सुदानवः) जो सुदानी (स्मत्) अच्छे प्रकार (चरन्ति) सेना के अनुकूल चलते हैं और सैनिकजनों का आदर करते हैं (युवानः) हे युवा सैनिकजनों ! (अतश्चित्) इस कारण से भी (नः) हम लोगों को आप (वस्यसा) परमोदार (हृदा) हृदय से (उपाववृध्वम्) सेवो और हम लोगों का हित करो ॥१८॥
Connotation: - परस्पर साहाय्य करना चाहिये, यह शिक्षा इससे मिलती है ॥१८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ये, च, सुदानवः) जो सत्कारार्ह पदार्थों को देनेवाले (मरुतः, अर्हन्ति) मनुष्य आपका सत्कार करते हैं (ये) अथवा जो (मीळ्हुषः) कामप्रद आपकी (स्मत्, चरन्ति) आज्ञापालनादि द्वारा भले प्रकार सेवा करते हैं (अतः, चित्) इन दोनों हेतुओं से (युवानः) युवा आप (वस्यसा, हृदा) स्वकीय सेवकों को वसुमान् बनाने की इच्छावाले हृदय से (नः, उप) हमारे समीप (आ) आवें और (आववृध्वम्) हमारा पोषणरूप से सत्कार करें ॥१८॥
Connotation: - हे वीर पुरुषों की सन्तान ! जो मनुष्य विविध प्रकार के पदार्थों से आपका सत्कार करते अथवा जो अन्य प्रकार से आपकी सेवा में तत्पर रहते हैं, उन्हें आप ऐश्वर्य्यशाली बनाकर धर्ममार्ग में प्रवृत्त करते हैं। तात्पर्य्य यह है कि जिस देश में दानशील पुरुषों द्वारा सार्वजनिक सुख के उत्पादक विद्वानों का सत्कार होता वा वीर पुरुषों द्वारा विद्वान् पुरुष सत्कारार्ह होते हैं, वह देश सदैव अभ्युदयशाली होता है ॥१८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तस्यैव विषयस्यावृत्तिः।

Word-Meaning: - हे मरुतो युष्मान्। ये जनाः। अर्हन्ति=आद्रियन्ते। ये च। स्मत्=साधुतया। चरन्ति=युष्मान् सेवन्ते। ते। सुदानवः=शोभनदानाः सुखिनो भवन्ति। कथंभूतान् युष्मान्। मीढुषः=सुखसेक्तॄन्। अतश्चित्=अतोपि कारणात्। नः=अस्मान्। हे मरुतः ! आ=सर्वान् जनान् अभिलक्ष्य। वस्यसा=वसीयसा वसुमत्तमेन। हृदा=हृदयेन। हे युवानो मरुतः ! उपाववृध्वम्=उपेत्याभिसंभजत। परस्परं साहाय्यं कर्त्तव्यमिति यावत् ॥१८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ये, च, सुदानवः) ये सुदानाः सन्तः (मरुतः, अर्हन्ति) मरुतः पूजयन्ति (ये) ये च (मीळ्हुषः) कामप्रदान् (स्मत्, चरन्ति) साधु परिचरन्ति (अतः, चित्) आभ्यां हेतुभ्यामपि (युवानः) युवानो यूयम् (वस्यसा, हृदा) वसुमन्तं कर्तुमिच्छता हृदयेन (नः, उप) अस्माकं समीपम् (आ) आगच्छत (आववृध्वम्) संभजध्वं च ॥१८॥