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सनि॑ता॒ विप्रो॒ अर्व॑द्भि॒र्हन्ता॑ वृ॒त्रं नृभि॒: शूर॑: । स॒त्यो॑ऽवि॒ता वि॒धन्त॑म् ॥

English Transliteration

sanitā vipro arvadbhir hantā vṛtraṁ nṛbhiḥ śūraḥ | satyo vitā vidhantam ||

Pad Path

सनि॑ता । विप्रः॑ । अर्व॑त्ऽभिः । हन्ता॑ । वृ॒त्रम् । नृऽभिः॑ । शूरः॑ । स॒त्यः । अ॒वि॒ता । वि॒धन्त॑म् ॥ ८.२.३६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:36 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:36


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनरपि इन्द्र के गुण कहे जाते हैं।

Word-Meaning: - वह इन्द्र (सनिता) सब प्रकार से दान देनेवाला है। पुनः (विप्रः) मनोरथ पूर्ण करनेवाला अथवा ज्ञान का बीजप्रद यद्वा परमविज्ञानी है, पुनः (अर्वद्भिः) संसारस्थ पदार्थों से वह दृश्य होता है (वृत्रम्+हन्ता) अन्धकार, अज्ञान, दुष्ट इत्यादि का घातक है, पुनः (नृभिः) मनुष्यों से पूजित है। पुनः (शूरः) शूर हैं। पुनः (सत्यः) सत्यस्वरूप है। पुनः (विधन्तम्) सेवक जन का (अविता) रक्षक है ॥३६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे परमात्मा परमदाता सत्य और रक्षक है, वैसे ही तुम भी यथाशक्ति दो, सत्याचारी होओ। अबल, असमर्थ और असहायकों की रक्षा करो ॥३६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विप्रः) वह विद्वान् कर्मयोगी (अर्वद्भिः, सनिता) गतिशील पदार्थों द्वारा सबका संभजन=विभाग करनेवाला है (वृत्रं, हन्ता) धर्ममार्ग में विरोध करनेवालों का हनन करनेवाला (नृभिः, शूरः) नेताओं सहित ओजस्वी=शूरवीर (सत्यः) सत्यतायुक्त (विधन्तं) जो अपने कार्य्य में लगे हुए हैं, उनका (अविता) रक्षक होता है ॥३६॥
Connotation: - वह विद्वान् कर्मयोगी, जो सबका प्रभु है, वह यानादि गतिशील पदार्थों द्वारा सबको इष्ट पदार्थों का विभाजक होता है और जो वैदिकधर्म में प्रवृत्त अनुष्ठाता पुरुष उन्नति कर रहे हैं, उनका विरोध करनेवाले दुष्टों को दण्ड देनेवाला और जो अपने वर्णाश्रमोचित कर्मों में लगे हुए हैं, उनकी सर्व प्रकार से रक्षा करता है ॥३६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनरिन्द्रं विशिनष्टि।

Word-Meaning: - स इन्द्रः। सनिता=महान् दातास्ति। विप्रः=विशेषेण प्राति सतां मनोरथान् पूरयति यः सः। यद्वा। वपति विज्ञानमिति विप्रः। यद्वा। मेधावी। अर्वद्भिः=अश्वैः संसारात्मकैः सह। लक्षितः। वृत्रम्=वृत्रस्य दुष्टस्य हन्ता। नृभिः स्तुत इति शेषः। शूरः। सत्यः। पुनः। विधन्तम्=परिचरन्तम्= परिचरतः। अविता=रक्षकः। सर्वविधयश्छन्दसि विकल्पन्त इति न कर्मणि षष्ठ्यत्र प्रवर्तिता ॥३६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विप्रः) विद्वान् सः (अर्वद्भिः, सनिता) गतिशीलैः पदार्थैः सर्वेषां संभक्ता (वृत्रं, हन्ता) धर्मपथवारकस्य हननशीलः (नृभिः) नेतृभिः सह (शूरः) ओजस्वी (सत्यः) सत्यतायुक्तः (विधन्तं) स्वकर्मसु प्रवर्तमानस्य (अविता) रक्षकोऽस्ति ॥३६॥