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ए॒वेदे॒ष तु॑विकू॒र्मिर्वाजाँ॒ एको॒ वज्र॑हस्तः । स॒नादमृ॑क्तो दयते ॥

English Transliteration

eved eṣa tuvikūrmir vājām̐ eko vajrahastaḥ | sanād amṛkto dayate ||

Pad Path

ए॒व । इत् । ए॒षः । तु॒वि॒ऽकू॒र्मिः । वाजा॑न् । एकः॑ । वज्र॑ऽहस्तः । स॒नात् । अमृ॑क्तः । द॒य॒ते॒ ॥ ८.२.३१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:31 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:23» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:31


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SHIV SHANKAR SHARMA

वही अनन्तकर्मा है, यह इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - विद्वानों से अनुभूयमान (एषः+एव) यही (इत्) निश्चय (तुविकूर्मिः) अनन्तकर्मकारक है। (एकः) वह अपने कार्य में किसी की सहायता की अपेक्षा नहीं करता, अतः एक ही है। (वज्रहस्तः) जिसके हाथ में ज्ञानरूप वज्र है अथवा दण्डधारी है। और (सनात्) सदा से (अमृक्तः) अविनश्वर है। वह इन्द्र हम भक्तजनों को (वाजान्) विवेक और विविध अन्न (दयते) देता है ॥३१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस हेतु वही विश्वकर्मा कर्मफलदाता और अविनश्वरदेव है। उसी की कृपा से विज्ञान और धन प्राप्त होते हैं। अतः आप भी कर्म करें। आलस्य त्यागें और उसी की शरण में जायँ ॥३१॥
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ARYAMUNI

अब अन्नादि पदार्थों के सुरक्षित रखने का विधान कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (एषः, एव, इत्) यही कर्मयोगी (तुविकूर्मिः) अनेक कर्मोंवाला (एकः) एक ही (वज्रहस्तः) वज्रसमान हस्तवाला (सनात्, अमृक्तः) चिरकालपर्य्यन्त निर्विघ्न (वाजान्) अन्नादि पदार्थों को (दयते) सुरक्षित रखता है ॥३१॥
Connotation: - इस मन्त्र का तात्पर्य्य यह है कि जिज्ञासु पुरुष कर्मयोगी की स्तुति करते हुए उसको चिरकालपर्य्यन्त अन्नादि खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखनेवाला कथन करते हैं, जिसका भाव यह है कि राजा तथा प्रजा को अन्न का कोष सदा चिरकाल तक सुरक्षित रखना चाहिये, जिससे प्रजा अन्न के कष्ट से दारुण दुःख को प्राप्त न हो। शास्त्र में “अन्नं वै प्राणः”=अन्न को प्राण कथन किया है, क्योंकि अन्न के विना प्राणी जीवित नहीं रह सकता, इसलिये पुरुषों को उचित है कि अन्न का कोश सदा सुरक्षित रखें ॥३१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

स ह्यनन्तकर्मास्तीति दर्शयति।

Word-Meaning: - एषः=कविभिरनुभूयमान इन्द्र एव। तुविकूर्मिः=बहुकर्मा अनन्तकर्मा। इदिति निश्चये। इन्द्रोऽनन्तकर्मास्तीति न संदेहः। पुनः। स एकः=अद्वितीयः स्वकार्ये साहाय्यानपेक्षः। पुनः। वज्रहस्तः=वज्रं विज्ञानाख्यं हस्ते यस्य स ज्ञानरूप इत्यर्थः। पुनः। सनात्=सदैव। अमृक्तः=अविनश्वरः। ईदृगिन्द्रः। अस्मभ्यमुपासकेभ्यः। वाजान्=विवेकान्। दयते=ददाति। सदा तत्प्रसादादेव विवेको लभ्यत इत्यर्थः ॥३१॥
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ARYAMUNI

अथ अन्नादिरक्षा विधीयते।

Word-Meaning: - (एषः, एव, इत्) एष एव कर्मयोगी (तुविकूर्मिः) बहुकर्मा (एकः) एक एव (वज्रहस्तः) वज्रवद्धस्तवान् (सनात्, अमृक्तः) चिरात् अनिर्बाधः सन् (वाजान्) अन्नादीनि (दयते) रक्षति ॥३१॥