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गिर॑श्च॒ यास्ते॑ गिर्वाह उ॒क्था च॒ तुभ्यं॒ तानि॑ । स॒त्रा द॑धि॒रे शवां॑सि ॥

English Transliteration

giraś ca yās te girvāha ukthā ca tubhyaṁ tāni | satrā dadhire śavāṁsi ||

Pad Path

गिरः॑ । च॒ । याः । ते॒ । गि॒र्वा॒हः॒ । उ॒क्था । च॒ । तुभ्य॑म् । तानि॑ । स॒त्रा । द॒धि॒रे । शवां॑सि ॥ ८.२.३०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:30 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:22» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:30


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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वर की स्तुति से वाणी बलवती होती है, इस अर्थ को इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे (गिर्वाहः) वाणियों का वाहक यद्वा हे स्तुतिप्रिय ! वस्तुतः परमात्मा ही सकल प्राणियों की वाणियों का प्रदाता है। आदि सृष्टि में मनुष्यजाति को उसी ने वाणी दी, इससे भी वही वाणीवाहक है। जब वही वाणी दाता है, तब हम मनुष्य उसकी क्या स्तुति कर सकते हैं। हमारी स्तुति विडम्बनामात्र है, तथापि अपने सन्तोष के लिये हम उसके गुणों का गान करते हैं। यह इस शब्द से ध्वनि है। हे परमात्मन् ! (ते) तेरे लिये हम मनुष्यों से प्रयुज्यमान (याः+च+गिरः) जो ये वचन हैं (च) और (तुभ्यम्) तेरे लिये (उक्था) जो पवित्र स्तुतिवचन हैं (तानि) वे दोनों (सत्रा) साथ ही (शवांसि) बलों को (दधिरे) धारण करते हैं। ईश्वर के उद्देश से प्रयुक्त वचनों में अधिक बल होते हैं ॥३०॥
Connotation: - जब मनुष्य ईश्वरीय तत्त्व जानता और तदीय गुणों से अपनी वाणी को पवित्र करता, तब ही उसमें बल आता, उससे सुरक्षित उपासक सर्वत्र सुप्रतिष्ठित होता है ॥३०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (गिर्वाहः) हे वाणियों द्वारा सेवनीय ! (या, ते, गिरः, च) जो आप सम्बन्धी वाणी हैं (च) तथा (तुभ्यं, उक्था) जो आपके लिये स्तोत्र हैं (तानि) वे सब (सत्रा) साथ ही (शवांसि) बलों को (दधिरे) उत्पन्न करते हैं ॥३०॥
Connotation: - हे ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगिन् ! आप सम्बन्धी स्तोत्रों तथा ऋचाओं द्वारा आपको उद्बोधन करते हुए आपकी प्रशंसा करते हैं कि कृपा करके आप हम लोगों को वेदविद्या का उपदेश करें, जिससे हम ऐश्वर्य्यशाली होकर संसार में यशस्वी हों ॥३०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वरस्तुत्या वाणी बलवती भवतीत्यर्थमनया दर्शयति।

Word-Meaning: - हे गिर्वाहः=गिरां वाणीनां वाहः। वस्तुतः परमात्मैव सर्वेषां प्राणिनां वाणीप्रदाता। आद्यसृष्टौ च मनुष्यजातौ तेनैव वाणी विस्पष्टा प्रदत्ता अतोऽपि स गिर्वाहः। यद्वा। हे मनुष्यवाणीप्रद ईश्वर ! ते=त्वदर्थम्। याश्च। गिरः=प्रत्यहम् अस्माभिः प्रयुज्यमाना वाचः सन्ति ताः। च=पुनः। तुभ्यम्=त्वदर्थम्। यानि। उक्था=उक्थानि अस्माभिः प्रयुज्यमानानि पवित्राणि स्तुतिवचनानि सन्ति तानि च। सत्रा=सार्धमेव। शवांसि=बलानि। दधिरे=धारयन्ति। ईश्वरोद्देशेन प्रयुज्यमाना वाचः स्तुतयश्च बलवत्यो भवन्ति ॥३०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (गिर्वाहः) हे गीर्भिः सेवनीय ! (याः, ते, गिरः, च) याश्च त्वत्सम्बन्धिवाण्यः (तुभ्यं, उक्था, च) त्वदर्थं स्तोत्राणि च (तानि) तानि सर्वाणि (सत्रा) सहैव (शवांसि) बलानि (दधिरे) दधते ॥३०॥