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वि॒द्मा ह्य॑स्य वी॒रस्य॑ भूरि॒दाव॑रीं सुम॒तिम् । त्रि॒षु जा॒तस्य॒ मनां॑सि ॥

English Transliteration

vidmā hy asya vīrasya bhūridāvarīṁ sumatim | triṣu jātasya manāṁsi ||

Pad Path

वि॒द्म । हि । अ॒स्य॒ । वी॒रस्य॑ । भू॒रि॒ऽदावा॑रीम् । सु॒ऽम॒तिम् । त्रि॒षु । जा॒तस्य॑ । मनां॑सि ॥ ८.२.२१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:21 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:21» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:21


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SHIV SHANKAR SHARMA

इसका महान् दान दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (अस्य) प्रत्यक्षवत् विद्यमान इस (वीरस्य) जगदाधार महावीर और (त्रिषु+जातस्य) त्रिभुवन में व्यापक परमात्मा की (भूरिदावरीम्) बहुत धन देनेवाली (सुमतिम्) सुबुद्धि और प्रीति को हम उपासक (हि) निश्चय से (विद्म) जानते हैं। क्योंकि (मनांसि) जिस परमात्मा के नियमों और व्रतों को त्रिलोक प्रकाशित कर रहा है, उसकी प्रीति और दान प्रत्यक्ष हैं, अतः हम जानते हैं और आप लोग भी जान सकते हैं। उसी की उपासना करो और उसी को धन्यवाद दो ॥२१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! क्या तुम उसकी महती प्रीति और बहुत दानों को नहीं जानते हो ? यह त्रिलोकी उसके नियम दिखला रही है। कैसी मेघों की घटा मनुष्यों के मन को प्रीतियुक्त करती है। कैसे-२ अद्भुत फूल, कन्द, ओषधि, व्रीहि और उपयोगी पशु इस प्रकार के सहस्रों वस्तु रात्रि-दिवा दे रहा है। हे मनुष्यो ! शतशः माता-पिताओं से भी वह बढ़कर वत्सल है। अतएव वही धनार्थ वा सन्तानार्थ भी ध्येय और मन्तव्य है ॥२१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अस्य, वीरस्य) इस कर्मयोगी वीर की (भूरिदावरीं) बहुदानशील (सुमतिं) सुमति को (विद्म, हि) हम जानें (त्रिषु) सत्त्वादि तीनों गुणों में (जातस्य) प्रविष्ट होनेवाले वीर के (मनांसि) मन को हम जानें ॥२१॥
Connotation: - यज्ञ में आये हुए कर्मयोगी की प्रशंसा करते हुए जिज्ञासु जनों का कथन है कि विद्यादि का दान देनेवाले इस बुद्धिमान् के अनुकूल हमलोग आचरण करें, जिसने सत्त्वादि तीनो गुणों को जाना है अर्थात् जो प्राकृतिक पदार्थों को भले प्रकार जानकर नवीन आविष्कारों का करनेवाला है, या यों कहो कि पदार्थविद्या में भले प्रकार निपुण कर्मयोगी से विद्यालाभ कर ऐश्वर्य्यशाली हों ॥२१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अस्य महद्दानं दर्शयति।

Word-Meaning: - अस्य=प्रत्यक्षस्येव सर्वत्र विद्यमानस्य। वीरस्य=महावीरस्य जगदाधारस्य। अतएव। त्रिषु=लोकेषु। जातस्य=व्याप्तस्य परमात्मनः। भूरिदावरीं =बहुधनस्य दात्रीं सुमतिं=कल्याणीं बुद्धिं प्रीतिं च। विद्म हि=जानीमः खलु। यस्येन्द्रस्य। मनांसि=नियमान् व्रतानि च लोकत्रयं प्रकाशते, हे जनाः स एवोपासनीयः ॥२१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अस्य, वीरस्य) अस्य कर्मयोगिनो वीरस्य (भूरिदावरीं) बहुदानशीलां (सुमतिं) सुबुद्धिं (विद्म, हि) जानीयाम हि (त्रिषु) त्रिषु गुणेषु सत्त्वादिषु (जातस्य) प्रविष्टस्य (मनांसि) चेतांसि विद्याम ॥२१॥