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तवा॒हम॑ग्न ऊ॒तिभि॒र्नेदि॑ष्ठाभिः सचेय॒ जोष॒मा व॑सो । सदा॑ दे॒वस्य॒ मर्त्य॑: ॥

English Transliteration

tavāham agna ūtibhir nediṣṭhābhiḥ saceya joṣam ā vaso | sadā devasya martyaḥ ||

Pad Path

तव॑ । अ॒हम् । अ॒ग्ने॒ । ऊ॒तिऽभिः । नेदि॑ष्ठाभिः । स॒चे॒य॒ । जोष॑म् । आ । व॒सो॒ इति॑ । सदा॑ । दे॒वस्य॑ । मर्त्यः॑ ॥ ८.१९.२८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:19» Mantra:28 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:34» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:28


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः वही विषय आ रहा है।

Word-Meaning: - हे सर्वगत (वसो) हे धनस्वरूप हे परमोदार ईश ! (मर्त्यः) मरणधर्मा (अहम्) मैं उपासक (देवस्य+तव) सर्वपूज्य आपकी (नेदिष्ठाभिः) समीपवर्ती (ऊतिभिः) रक्षाओं से (जोषम्) प्रीति को (आ+सचेय) पाऊँ, ऐसी कृपा कर ॥२८॥
Connotation: - हे भगवन् ! मुझको निखिल दुर्व्यसन और दुष्टता से दूर करो जिससे मैं सबका प्रीतिपात्र बनूँ। अज्ञान से दुर्व्यसन में और स्वार्थ से परद्रोह में लोग फँसते हैं, अतः सत्सङ्ग और विद्याभ्यास और ईश्वरीय गुणों का अपने हृदय में आधान करें ॥२८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने, वसो) हे व्यापक परमात्मन् ! (मर्त्यः, अहम्) जन्म-मरणशील हम (देवस्य, तव) प्रकाशमय आपकी (नेदिष्ठाभिः, ऊतिभिः) अत्यन्त समीप में होनेवाली रक्षाओं सहित (सदा) सदैव (जोषम्) आपकी प्रीति का (आसचेय) आसेवन करते रहें ॥२८॥
Connotation: - उपासकों को परमात्मा से यह प्रार्थना करनी चाहिये कि हे परमात्मन् ! हमारे रक्षायोग्य जो अन्नादि पदार्थ हैं, उनको आप अपनी व्यापक शक्ति से समीप ही में उत्पन्न करते रहें, जिससे सुखपूर्वक आपका सेवन कर सकें, या यों कहो कि वह दिव्यगुणसम्पन्न परमात्मा हमारे कल्याणकारक भोग्यपदार्थ तथा हमको आरोग्यता प्रदान करे, जिससे हम चिन्तारहित होकर औपकारिक कार्य्य करते हुए आपकी उपासना में निरन्तर रत रहें ॥२८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदनुवर्त्तते।

Word-Meaning: - हे अग्ने=सर्वगत ! हे वसो=धनस्वरूप परमोदार ईश ! अहं मर्त्यः=मनुष्य उपासकः। देवस्य=सर्वपूज्यस्य। तव। नेदिष्ठाभिः=अन्तिकतमाभिः=समीपवर्त्तिनीभिः। ऊतिभिः=रक्षाभिः। सदा जोषम्=प्रीतिम्। आसचेय=अभिसेवेय ॥२८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वसो, अग्ने) हे व्यापक परमात्मन् ! (मर्त्यः, अहम्) मरणशीलोऽहम् (देवस्य, तव) द्योतमानस्य तव (नेदिष्ठाभिः, ऊतिभिः) अन्तिकतमाभी रक्षाभिः (सदा) शश्वत् (आसचेय) आसेवेथ (जोषम्) तव प्रीतिम् ॥२८॥