Word-Meaning: - (मनुर्हितम्) यज्ञ करनेवाले मनुष्यों से धारण किये गये उस परमात्मा का (गिरा, ईडे) स्तुतिवाणियों से स्तवन करते हैं (यम्) जिस (दूतम्) शत्रु के उपतापक अथवा शीघ्रगतिवाले (अरतिम्) प्राप्तव्य (यजिष्ठम्) ब्रह्माण्डरूप यज्ञ के कर्त्ता (हव्यवाहनम्) हव्यपदार्थों को प्राप्त करानेवाले परमात्मा को (देवाः, न्येरिरे) देव=दिव्यगुणसम्पन्न प्राणी प्राप्त करते हैं ॥२१॥
Connotation: - जो परमात्मा ब्रह्माण्डरूप महान् यज्ञ का कर्ता तथा ब्रह्माण्डगत विविध पदार्थों को यथायोग्य यथाभाग सब प्रजाओं को वितीर्ण करनेवाला तथा जो दिव्य विद्वानों द्वारा सेवित है, वही सर्वथा प्राप्तव्य है और ध्यान करने पर शीघ्र ही ध्यानविषय हो जाना उसकी शीघ्रगति कही जाती है। वास्तव में सर्वव्यापक की गति नहीं हो सकती। ऐसे महान् तथा सर्वव्यापक परमात्मा को देव=योगसम्पन्न विद्वान् पुरुष ही प्राप्त कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥२१॥