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भ॒द्रं मन॑: कृणुष्व वृत्र॒तूर्ये॒ येना॑ स॒मत्सु॑ सा॒सह॑: । अव॑ स्थि॒रा त॑नुहि॒ भूरि॒ शर्ध॑तां व॒नेमा॑ ते अ॒भिष्टि॑भिः ॥

English Transliteration

bhadram manaḥ kṛṇuṣva vṛtratūrye yenā samatsu sāsahaḥ | ava sthirā tanuhi bhūri śardhatāṁ vanemā te abhiṣṭibhiḥ ||

Pad Path

भ॒द्रम् । मनः॑ । कृ॒णु॒ष्व॒ । वृ॒त्र॒ऽतूर्ये॑ । येन॑ । स॒मत्ऽसु॑ । स॒सहः॑ । अव॑ । स्थि॒रा । त॒नु॒हि॒ । भूरि॑ । शर्ध॑ताम् । व॒नेम॑ । ते॒ । अ॒भिष्टि॑ऽभिः ॥ ८.१९.२०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:19» Mantra:20 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:32» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:20


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SHIV SHANKAR SHARMA

इससे प्रार्थना करते हैं।

Word-Meaning: - हे सर्वगत देव ! (वृत्रतूर्य्ये) महासंग्राम में भी (मनः+भद्रम्) हमारे मन को कल्याणयुक्त (कृणुष्व) करो, (येन) जिस मन से आप (समत्सु) जगत् में (सासहः) सर्वविघ्नों को शान्त करते हैं। हे ईश ! (शर्धताम्) महादुष्ट और जगत् के कण्टकजनों के (स्थिरा) बहुत दृढ़ भी (भूरि) और बहुत भी नगर हों, तो भी उन्हें (अव+तनुहि) भूमि में मिला देवें, जिससे हम उपासक (ते) आपके दिये हुए (अभिष्टिभिः) अभिलषित मनोरथों से (वनेम) संयुक्त होवें ॥२०॥
Connotation: - महा महासंग्राम में बुद्धिमान् अपने मन को विकृत न करें और न सत्य से ही कदापि दूर चले जाएँ ॥२०॥
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ARYAMUNI

अब क्षात्रबलवर्धक यज्ञ की पूर्ति के लिये परमात्मा से प्रार्थना करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! आप (वृत्रतूर्ये) शत्रुनिवारण-संग्राम में (मनः, भद्रम्, कृणुष्व) हमारे मन को कल्याणमय करें (येन) जिस मन से (समत्सु) संग्रामों में (सासहः) शत्रुओं का अभिभव कराते हैं (शर्धताम्) और शत्रुओं के (भूरि, स्थिरा) दृढ़ समुदाय को (अवतनुहि) पृष्ठभाग की ओर अपसरण करें, जिससे (अभिष्टिभिः) महान् यज्ञों द्वारा (ते, वनेम) आपका सेवन करने में समर्थ हों ॥२०॥
Connotation: - हे बलप्रद परमात्मन् ! क्षात्रबलवर्धक संग्राम में हमारे आत्मा को दृढ़ तथा कल्याणमय करें, जिससे शत्रुसमुदाय पीठ दिखावे। हमारे क्षात्रबलप्रधान यज्ञ सफल हों, जिनमें प्रजाजनों का हितचिन्तन करते हुए उनको सुखपूर्ण करने में कृतकार्य्य हों और सब याज्ञिक आपकी उपासना में निरन्तर तत्पर रहें ॥२०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अनया प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - हे सर्वगत देव ! वृत्रतूर्य्ये=महासंग्रामे। अस्माकं मनः। भद्रम्=कल्याणं मङ्गलविधायकमेव। कृणुष्व=कुरु। हे भगवन् ! येन मनसा। समत्सु=संमाद्यन्ति भूतानि येषु तेषु समत्सु=संसारेषु। सासहः=सर्वान् विघ्नान् अभिभवसि=शमयसि भगवन्। शर्धताम्=महादुष्टानां जगत्कण्टकानाम्। स्थिरा=स्थिराण्यपि। भूरि=भूरीण्यपि पुराणि। अवतनुहि=अधस्तात् भूमिसात् कुरु। येन वयम्। ते अभिष्टिभिः=अभीष्टैरभिलषितैर्मनोरथैः। वनेम=संगच्छेमहि ॥२०॥
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ARYAMUNI

अथ क्षात्रबलवर्धकयज्ञपूर्त्यर्थं परमात्मा प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (वृत्रतूर्ये) शत्रुवारणसंग्रामे (मनः, भद्रम्, कृणुष्व) अस्माकं मनः कल्याणं कुरु (येन) येन मनसा (समत्सु) संग्रामेषु (सासहः) शत्रूनभिभावयसि (शर्धताम्) शत्रूणाम् (भूरि, स्थिरा) बहूनि दृढानि (अवतनुहि) अपसारय (अभिष्टिभिः) यागैः (ते, वनेम) त्वाम्भजेम यतः ॥२०॥