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तद॑ग्ने द्यु॒म्नमा भ॑र॒ यत्सा॒सह॒त्सद॑ने॒ कं चि॑द॒त्रिण॑म् । म॒न्युं जन॑स्य दू॒ढ्य॑: ॥

English Transliteration

tad agne dyumnam ā bhara yat sāsahat sadane kaṁ cid atriṇam | manyuṁ janasya dūḍhyaḥ ||

Pad Path

तत् । अ॒ग्ने॒ । द्यु॒म्नम् । आ । भ॒र॒ । यत् । स॒सह॑त् । सद॑ने । कम् । चि॒त् । अ॒त्रिण॑म् । म॒न्युम् । जन॑स्य । दुः॒ऽध्यः॑ ॥ ८.१९.१५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:19» Mantra:15 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:31» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:15


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SHIV SHANKAR SHARMA

अग्निवाच्य ईश्वर की स्तुति दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (अग्ने) हे सर्वगत ईश्वर ! (तद्+द्युम्नम्) उस प्रकाशमान ज्ञान को (आभर) हमारे हृदय में लाइये (यत्) जो ज्ञान (सदने) हृदयरूप भवन में (कञ्चित्+अत्रिणम्) स्थित और सन्तापप्रद निखिल अविवेक को (सासहत्) सहन करे अर्थात् विनष्ट करे और जो (दूढ्यः) दुर्मति (जनस्य) मनुष्य के (मन्युम्) क्रोध को भी दूर करे ॥१५॥
Connotation: - ईश्वर की प्रार्थना और विद्या द्वारा वैसे विवेक का उपार्जन करे, जिससे महान् रिपु हृदयस्थ अविवेक विनष्ट हो और गृहसम्बन्धी निखिल कलह दूर हों ॥१५॥
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ARYAMUNI

अब क्रोध न करनेवाले को फल कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (अग्ने) हे परमात्मन् ! (तद्, द्युम्नम्) आप उस पराक्रम को (आभर) मुझे आहरण करें (यत्) जो (सदने) गृह में वर्तमान (कंचित्, अत्रिणम्) किसी भी सतानेवाले राक्षस को और (दूढ्यः, जनस्य) मूर्ख मनुष्य के (मन्युम्) अनुचित क्रोध को (सासहत्) अभिभूत कर सके ॥१५॥
Connotation: - प्रत्येक उपासक को चाहिये कि वह परमात्मोपासना द्वारा स्वशक्ति बढ़ाकर अनुचित व्यापार से स्वकार्यबाधित करनेवालों को ही बाधित करें, अपराधरहित प्राणी को कदापि नहीं, क्योंकि निरपराध प्राणी को बाधित करना असुरभाव कहलाता है, अतएव पुरुष असुरभाव का कदापि अवलम्बन न करे और किसी प्राणी पर कदापि अनुचित क्रोध न करे, ऐसा पुरुष सदैव विपत्तिग्रस्त रहता और अक्रोधी पुरुष सबका मित्र होता और उसका जीवन संसार में सुखमय होता है ॥१५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अग्निवाच्येश्वरस्य स्तुतिं दर्शयति।

Word-Meaning: - हे अग्ने ! व्यापिन् देव ! तद् द्युम्नम्=द्योतमानं ज्ञानम्। आभर=आहर=अस्माकं हृदि आनय। यज्ज्ञानम्। सदने=हृदयगृहे तिष्ठन्तम्। कं चिदत्रिणं ज्ञानभक्षकं शरीरशोषकं अविवेकम्। सासहत्=सासहेत=अभिभवेत्। पुनः। यद् द्युम्नम्। दूढ्यः=दुर्धियो जनस्य। मन्युम्=क्रोधमपि विनाशयेत् ॥१५॥
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ARYAMUNI

अथ अक्रोधिनः फलं वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (अग्ने) हे परमात्मन् ! (तद्, द्युम्नम्) तादृशं पराक्रमम् (आभर) आहर (यत्, सदने) यद्गृहे वर्तमानम् (कंचित्, अत्रिणम्) कंचिददनशीलं राक्षसादिकम् (सासहत्) साहयेत (दूढ्यः, जनस्य) दुर्धियो जनस्य (मन्युम्) क्रोधम् सासहत् ॥१५॥