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शम॒ग्निर॒ग्निभि॑: कर॒च्छं न॑स्तपतु॒ सूर्य॑: । शं वातो॑ वात्वर॒पा अप॒ स्रिध॑: ॥

English Transliteration

śam agnir agnibhiḥ karac chaṁ nas tapatu sūryaḥ | śaṁ vāto vātv arapā apa sridhaḥ ||

Pad Path

शम् । अ॒ग्निः । अ॒ग्निऽभिः॑ । क॒र॒त् । शम् । नः॒ । त॒प॒तु॒ । सूर्यः॑ । शम् । वातः । वा॒तु॒ । अ॒र॒पाः । अप॑ । स्रिधः॑ ॥ ८.१८.९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:18» Mantra:9 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:9


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SHIV SHANKAR SHARMA

इससे आशीर्वाद माँगते हैं।

Word-Meaning: - (अग्निः) यह भौतिक अग्नि (अग्निभिः) अग्निहोत्रादि कर्मों से या विद्युदादिकों की सहायता से (शम्) हमारे रोगों का शमन करे या हमको सुख करे (सूर्य्यः) तथा सूर्य्य भी (शम्) कल्याण या रोगशमन जैसे हो, वैसी (तपतु) गरमी देवे। तथा (वातः) वायु भी (अरपाः) पापरहित अर्थात् शीतल मन्द सुगन्धि (वातु) बहे। और (स्रिधः) बाधक रोगादिक विघ्न और शत्रु (अप) विनष्ट होवें ॥९॥
Connotation: - यह स्वाभाविक प्रार्थना है। राजा और अमात्यादिक नाना उपायों से प्रजासम्बन्धी विघ्नों को दूर किया करें ॥९॥
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ARYAMUNI

अब सुख की प्राप्ति के लिये परमात्मा से प्रार्थना की जाती है।

Word-Meaning: - (अग्निः) अग्रणी परमात्मा (अग्निभिः) गार्हपत्यादि भौतिकाग्निहारी (शम्, करत्) शान्ति करे (सूर्यः) और उसकी महिमा से सूर्य भी (नः, शम्, तपतु) हमारे लिये सुखकर तपे (वातः) वायु भी (अरपाः) पापरहित शुद्ध होकर (शम्, वातु) सुखकर बहे (स्रिधाः) सम्पूर्ण विघ्न (अप) दूर हों ॥९॥
Connotation: - हे सर्वोपरि पूज्य परमात्मन् ! आप ऐसी कृपा करें कि यह भौतिकाग्नि, यह सूर्य्य तथा वायु आदि भौतिक पदार्थ हमारे लिये सुखकर हों और आपकी कृपा से सब विघ्न हमसे दूर रहें, ताकि हम विद्याप्राप्ति द्वारा शारीरिक तथा आत्मिक दोनों प्रकार की उन्नति करें ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

आशिषं याचते।

Word-Meaning: - अग्निः। अग्निभिः=अग्निहोत्रादिभिर्विद्युदादिभिर्वा। नोऽस्माकम्। शम्=रोगाणां शमनम्। करत्=करोतु। सूर्यश्चापि। शम्=रोगशमनं यथा भवति तथा। तपतु=दीप्यताम्। वातः=वायुरपि। अरपः=पापरहितः। वातु=वहतु। तथा। स्रिधः=बाधका रोगादयः। अप=अपगच्छन्तु ॥९॥
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ARYAMUNI

अथ सुखप्राप्त्यर्थं परमात्मा प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - (अग्निः) अग्रणीः परमात्मा (अग्निभिः) गार्हपत्यादिभिर्भौतिकैः (शम्, करत्) सुखं करोतु (सूर्यः) तत्प्रभावात्सूर्योऽपि (नः, शम्, तपतु) अस्मभ्यं सुखं यथा तथा तपतु (वातः) वायुरपि (अरपाः) निष्पापः (शम्, वातु) सुखम् वातु (स्रिधः) विघ्नानि (अप) अपनीयन्ताम् ॥९॥