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वास्तो॑ष्पते ध्रु॒वा स्थूणांस॑त्रं सो॒म्याना॑म् । द्र॒प्सो भे॒त्ता पु॒रां शश्व॑तीना॒मिन्द्रो॒ मुनी॑नां॒ सखा॑ ॥

English Transliteration

vāstoṣ pate dhruvā sthūṇāṁsatraṁ somyānām | drapso bhettā purāṁ śaśvatīnām indro munīnāṁ sakhā ||

Pad Path

वास्तोः॑ । प॒ते॒ । ध्रु॒वा । स्थूणा॑ । अंस॑त्रम् । सो॒म्याना॑म् । द्र॒प्सः । भे॒त्ता । पु॒राम् । शश्व॑तीनाम् । इन्द्रः॑ । मुनी॑नाम् । सखा॑ ॥ ८.१७.१४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:17» Mantra:14 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:14


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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्र की महिमा दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - यहाँ आधी ऋचा प्रत्यक्षकृत और आधी परोक्षकृत है। (वास्तोः+पते) हे निवासस्थानीय समस्त जगत् के प्रभो ! आपकी कृपा से (स्थूणा) इस जगद्रूप गृह का स्तम्भ (ध्रुवा) स्थिर होवे। (सोम्यानाम्) परमदर्शनीय सकल प्राणियों का (अंसत्रम्) बल बढ़े। (इन्द्रः) स्वयं इन्द्र (द्रप्सः) इसके ऊपर दयावान् होवे। दुष्टों के (शश्वतीनाम्) अतिशय पुरानी (पुराम्) पुरियों का भी (भेत्ता) विनाशक होवे और (मुनीनाम्) मुनियों का (सखा) मित्र होवे ॥१४॥
Connotation: - सबके कल्याण के लिये ईश्वर से प्रार्थना करे। सब कोई निज बल बढ़ावे। अपने-२ स्थानों को सुदृढ बना रक्खे और ऐसा शुभ आचरण करे कि वह ईश सदा उस पर प्रसन्न रहे ॥१४॥
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ARYAMUNI

अब ईश्वर को सम्बोधन करते हुए अपनी तथा योद्धा के कुशल के लिये प्रार्थना करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (वास्तोष्पते) हे सब निवासस्थानों के स्वामी परमात्मन् ! (सोम्यानाम्) सोमनिष्पादक हम लोगों का (स्थूणा) गृहस्तम्भ और (अंसत्रम्) शरीस्थ बल (ध्रुवा) स्थित हो जिससे (मुनीनाम्, सखा) हम ज्ञानियों के मित्र होकर (द्रप्सः, इन्द्रः) वेगवान् योद्धा (शश्वतीनां) अनेक बार होनेवाले (पुराम्) शत्रुपुरों का (भेत्ता) भेदन करता हो ॥१४॥
Connotation: - हे सर्वरक्षक तथा सबके स्वामी परमात्मन् ! आप ऐसी कृपा करें कि हम उपासकों का शारीरिक बल वृद्धि को प्राप्त हो, जिससे हम आत्मिक उन्नति करते हुए ज्ञानसम्पन्न पुरुषों के प्रिय हों अर्थात् उनके सत्सङ्ग से ज्ञानी होकर आपको प्राप्त हों। हे प्रभो ! आप ही हमारे गृह, परिवार तथा गौ आदि धनों की रक्षा करनेवाले और आप ही शत्रुसमुदाय से हमारी रक्षा करके यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त करनेवाले हो ॥१४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्रमहिमा प्रदर्श्यते।

Word-Meaning: - अर्धर्चं प्रत्यक्षकृतम्, अर्धर्चञ्च परोक्षकृतम्। हे वास्तोष्पते ! अस्य निवासस्य जगतः पते=स्वामिन्। तव कृपया। स्थूणा=गृहाधारभूतः स्तम्भः। ध्रुवा=स्थिरा भवतु। तथा। सोम्यानाम्=द्रष्टव्यानाम्=प्राणिनाम्। अंसत्रम्=बलं भवतु। स्वयमिन्द्रश्च। द्रप्सः=सर्वेषां प्राणिनामुपरि द्रवीभूतो भवतु। पुनः। दुष्टानाम्। शश्वतीनां पुराणीनामपि। पुराम्। भेत्ता। पुनः। मुनीनां सखा भवतु ॥१४॥
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ARYAMUNI

सम्प्रतीश्वरं संबोधयन् स्वस्य योद्धुश्च कुशलं याचते।

Word-Meaning: - (वास्तोष्पते) हे गृहपते परमात्मन् ! (सोम्यानाम्) सोमनिष्पादकानामस्माकम् (स्थूणा) गृहस्तम्भः (अंसत्रम्) शरीरस्थं बलं च (ध्रुवा) ध्रुवं भवतु येन (मुनीनाम्, सखा) ज्ञानिनां मित्रम् (द्रप्सः, इन्द्रः) वेगवानस्माकं योद्धा (शश्वतीनां) निरन्तराणाम् (पुराम्) शत्रुपुराणाम् (भेत्ता) भेत्ता स्यात् ॥१४॥