शाचि॑गो॒ शाचि॑पूजना॒यं रणा॑य ते सु॒तः । आख॑ण्डल॒ प्र हू॑यसे ॥
English Transliteration
śācigo śācipūjanāyaṁ raṇāya te sutaḥ | ākhaṇḍala pra hūyase ||
Pad Path
शाचि॑गो॒ इति॒ शाचि॑ऽगो । शाचि॑ऽपूजन । अ॒यम् । रणा॑य । ते॒ । सु॒तः । आख॑ण्डल । प्र । हू॒य॒से॒ ॥ ८.१७.१२
Rigveda » Mandal:8» Sukta:17» Mantra:12
| Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:2
| Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:12
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SHIV SHANKAR SHARMA
पुनः वही विषय आ रहा है।
Word-Meaning: - (शाचिगो) हे दृढतर पृथिव्यादिलोकोत्पादक ! (शाचिपूजन) हे प्रख्याताभ्यर्चन महादेव ! (ते) तेरा (अयम्+सुतः) उत्पादित यह संसार (रणाय) सकल जीवों को आनन्द पहुँचाने के लिये विद्यमान है। इस कारण (आखण्डल) हे दुष्टनिवारक ! (प्र+हूयसे) तू सर्वत्र उत्तमोत्तम स्तोत्रों से पूजित हो रहा है ॥१२॥
Connotation: - जिस कारण ईश्वर ने इस जगत् को रचा है और इसके द्वारा सर्व प्राणियों को सुख पहुँचा रहा है, अतः इस तत्त्व को जानकर ऋषि-मुनिगण इसकी सदा पूजा किया करते हैं ॥१२॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (शाचिगो) हे समर्थ वाणीवाले (शाचिपूजन) समर्थ पूजनवाले योद्धा ! (अयम्) यह सोम (ते, रणाय) आपके सुख के लिये (सुतः) संस्कृत किया है इससे (आखण्डल) हे शत्रुओं का खण्डन करनेवाले ! (प्रह्वयसे) हम लोगों से आह्वान किये जाते हैं ॥१२॥
Connotation: - हे विश्वासार्ह वाणीवाले तथा सत्कारयोग्य योद्धा जनो ! हम लोग आपको यज्ञसदन में बुलाकर सत्कार करते हैं। आप हमारी और हमारे यज्ञ की शत्रुओं से सदैव रक्षा करते रहें, जिससे हमारे यज्ञ में कोई विघ्न न हो और हम अपने उद्देश्य की सिद्धि में कृतकार्य्य हों ॥१२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA
पुनस्तदनुवर्त्तते।
Word-Meaning: - हे शाचिगो=“शाचयः शक्ताः स्वस्वकार्य्ये समर्था गावः पृथिव्यादिलोकाः यस्य स शाचिगुः।” हे दृढतरपृथिव्यादिलोकोत्पादक ! हे शाचिपूजन=प्रसिद्धपूजन देव ! ते=तव। सुतः=सम्पादित उत्पादितोऽयं संसारः। रणाय=आनन्दाय वर्तते। अतः हे आखण्डल=दुष्टानां आखण्डयितः। त्वं सर्वत्र। प्र+हूयसे=प्रकृष्टाभिः स्तुतिभिः। आहूयसे=पूज्यसे ॥१२॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (शाचिगो) हे समर्थवाक् (शाचिपूजन) समर्थपूजन ! (अयम्) अयं सोमः (ते, रणाय) तव सुखाय (सुतः) संस्कृतः अतः (आखण्डल) हे आखण्डयितः ! (प्रह्वयसे) अस्माभिराहूयसे ॥१२॥