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तमिच्च्यौ॒त्नैरार्य॑न्ति॒ तं कृ॒तेभि॑श्चर्ष॒णय॑: । ए॒ष इन्द्रो॑ वरिव॒स्कृत् ॥

English Transliteration

tam ic cyautnair āryanti taṁ kṛtebhiś carṣaṇayaḥ | eṣa indro varivaskṛt ||

Pad Path

तम् । इत् । च्यौ॒त्नैः । आर्य॑न्ति । तम् । कृ॒तेभिः॑ । च॒र्ष॒णयः॑ । ए॒षः । इन्द्रः॑ । व॒रि॒वः॒ऽकृत् ॥ ८.१६.६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:16» Mantra:6 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:20» Mantra:6 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:6


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः वही विषय आ रहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यों ! विवेकीजन (तम्+इत्) उसी इन्द्र की (च्यौत्नैः) बलवान् स्तोत्रों से (आर्य्यन्ति) स्तुति करते हैं, यद्वा श्रेष्ठ बनाते हैं और (चर्षणयः) मनुष्यगण (कृतेभिः) निज-२ कर्मों के द्वारा (तम्) उसी इन्द्र के निकट (आर्य्यन्ति) जाते हैं यद्वा आश्रय लेते हैं। (एषः+इन्द्रः) यही परमात्मा (वरिवस्कृत्) धन का भी कर्त्ता-धर्त्ता है ॥६॥
Connotation: - भगवान् के लिये ही उत्तमोत्तम स्तोत्र रचें और ऐसे शुभकर्म करें, जिनसे ईश्वर की प्राप्ति हो। हे मनुष्यों ! वही सर्वप्रकार धनों का प्रदाता है, यह जान उसकी उपासना करो ॥६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (चर्षणयः) मनुष्य (च्यौत्नैः) बलवर्धक स्तोत्रों द्वारा (तमित्) उसी की (आर्यन्ति) ईश्वरभाव से उपासना करते हैं और (कृतेभिः) विविध कर्मों द्वारा (तमित्) उसी की सेव्यभाव से उपासना करते हैं, क्योंकि (एषः, इन्द्रः) यह परमात्मा (वरिवस्कृत्) बलप्रदाता है ॥६॥
Connotation: - विद्वान् पुरुष वेदविहित बलवर्धक स्तोत्रों द्वारा उसी महान् बलप्रद परमात्मा की ईश्वरभाव से तथा यज्ञादि विविध कर्मों द्वारा सेव्यभाव से उपासना करते हैं, जो बल तथा विजयप्रदाता है। इसलिये प्रजाजनों को सेव्यभाव से उसी की उपासना में निरन्तर रत रहना चाहिये, जिससे उनकी शारीरिक, आत्मिक तथा सामाजिक उन्नति हो ॥६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदनुवर्त्तते।

Word-Meaning: - हे मनुष्याः=विवेकिनो जनाः। तमित्तमेवेन्द्रम्। च्यौत्नैः=बलवद्भिः स्तोत्रैः। आर्यन्ति=स्तुवन्ति। धातूनामनेकार्थत्वात्। यद्वा। आर्य्यन्ति=श्रेष्ठयन्ति श्रेष्ठं कुर्वन्ति। पुनः। चर्षणयः=मनुष्याः। तमेव। कृतेभिः=कृतैः कर्मभिः। आर्य्यन्ति=गच्छन्ति= आश्रयन्तीत्यर्थः। एष इन्द्रः। वरिवस्कृत्=वरिवसो धनस्य कर्त्तास्ति। ईदृशमिन्द्रमेव पूजयत ॥६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (चर्षणयः) मनुष्याः (च्यौत्नैः) बलोत्पादकैः स्तोत्रैः (तमित्) तमेव (आर्यन्ति) आर्यत्वेन उपासते (कृतेभिः) कर्मभिश्च (तमित्) तमेव यतः (एषः, इन्द्रः) अयं परमात्मा (वरिवस्कृत्) बलकृदस्ति ॥६॥