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प्र स॒म्राजं॑ चर्षणी॒नामिन्द्रं॑ स्तोता॒ नव्यं॑ गी॒र्भिः । नरं॑ नृ॒षाहं॒ मंहि॑ष्ठम् ॥

English Transliteration

pra samrājaṁ carṣaṇīnām indraṁ stotā navyaṁ gīrbhiḥ | naraṁ nṛṣāham maṁhiṣṭham ||

Pad Path

प्र । स॒म्ऽराज॑म् । च॒र्ष॒णी॒नाम् । इन्द्र॑म् । स्तोता॑ । नव्य॑म् । गीः॒ऽभिः । नर॑म् । नृ॒ऽसाह॑म् । मंहि॑ष्ठम् ॥ ८.१६.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:16» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्र की स्तुति दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वानों ! (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के (सम्राजम्) महाराज (नव्यम्) स्तुत्य=प्रशंसनीय (नरम्) जगन्नेता (नृषाहम्) दुष्ट मनुष्यों का पराजयकारी और (मंहिष्ठम्) अतिशय दानी परमोदार (इन्द्रम्) परमदेव की (गीर्भिः) स्व-२ वचनों से (प्रस्तोत) अच्छे प्रकार स्तुति कीजिये ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! इन्द्र की ही प्रशंसा करो, जो मनुष्यों का महाराज और नायक है। जो परमोदार और दुष्टनियन्ता है ॥१॥
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ARYAMUNI

अब इस सूक्त में परमात्मा का महत्त्व वर्णन करते हुए प्रथम कल्याण की कामनावाले पुरुषों को उसकी उपासना करने का विधान कथन करते हैं।

Word-Meaning: - हे स्तोता लोगो ! (चर्षणीनाम्, सम्राजम्) मनुष्यों के ईश्वरों के भी ईश्वर (नव्यम्) नित्यनूतन (नरम्) सबके नेता (नृषाहम्) मनुष्यों को कर्मफल के सहानेवाले (मंहिष्ठम्) अत्यन्त दानी (इन्द्रम्) परमात्मा की (गीर्भिः) स्तोत्रों द्वारा (प्रस्तोत) निरन्तर स्तुति करो ॥१॥
Connotation: - हे कल्याण की कामनावाले पुरुषो ! तुम लोग राजाओं के राजा महाराजा, सबके नेता, मनुष्यों को कर्मफल देनेवाले और जो नानाविध पदार्थों का दान प्रदान करके प्राणिमात्र को सन्तुष्ट करता है, उस प्रभु की वेदवाणियों द्वारा निरन्तर स्तुति करो, जिससे तुम्हारी सब कामनाएँ पूर्ण हों ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्रस्तुतिः दर्शयति।

Word-Meaning: - हे विद्वांसः ! चर्षणीनाम्=मनुष्याणाम्। सम्राजम्=महाराजम्। नव्यम्=नवनीयम्=स्तुत्यम्। नरम्=नेतारं पुरुषमिव जगच्चालकम्। नृसाहम्=नॄन्=दुष्टान् पुरुषान् सहते=अभिभवतीति नृसाट् तं नृसाहम्। पुनः। मंहिष्ठम्=दातृतमम्। ईदृशमिन्द्रमेव। गीर्भिः−स्व-२ वचनैः। प्रस्तोत=प्रकर्षेण स्तुत=प्रशंसत ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ कल्याणं कामयमानस्य हिताय महत्त्ववर्णनपूर्वकं तदुपासना कथ्यते।

Word-Meaning: - हे स्तोतारः ! (चर्षणीनाम्, सम्राजम्) मनुष्याणामीश्वरेश्वरम् (नव्यम्) नित्यनूतनम् (नरम्) नेतारम् (नृषाहम्) मनुष्याणां सुखदुःखयोः साहयितारम् (मंहिष्ठम्) दातृतमम् (इन्द्रम्) परमात्मानम् (गीर्भिः) स्तोत्रैः (प्रस्तोत) प्रकर्षेण स्तुत ॥१॥