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वा॒वृ॒धा॒नस्य॑ ते व॒यं विश्वा॒ धना॑नि जि॒ग्युष॑: । ऊ॒तिमि॒न्द्रा वृ॑णीमहे ॥

English Transliteration

vāvṛdhānasya te vayaṁ viśvā dhanāni jigyuṣaḥ | ūtim indrā vṛṇīmahe ||

Pad Path

वा॒वृ॒धा॒नस्य॑ । ते॒ । व॒यम् । विश्वा॑ । धना॑नि । जि॒ग्युषः॑ । ऊ॒तिम् । इ॒न्द्र॒ । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥ ८.१४.६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:14» Mantra:6 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:6


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SHIV SHANKAR SHARMA

रक्षा के लिये प्रार्थना।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (ववृधानस्य) सृष्टिकार्य्य में पुनः-२ लगे हुए और उसको सब प्रकार से बढ़ाते हुए और (विश्वा) निखिल (धनानि) धनों के (जिग्युषः) महास्वामी (ते) तेरे निकट (ऊतिम्) रक्षा और साहाय्य के लिये (वयम्) हम उपासकगण (वृणीमहे) प्रार्थना करते हैं। हे ईश ! यद्यपि सृष्टि की रक्षा करने में तू स्वयमेव आसक्त है और सूर्य्य, चन्द्र भूप्रभृति महाधनों का तू ही स्वामी भी है, यदि तेरा पालन जगत् में न हो, तो सर्व वस्तु विनष्ट हो जाय। अतः तू ही बनाता बिगाड़ता और संभालता है। तथापि हम मनुष्य अज्ञानवश और अविश्वास से रक्षा की याचना करते रहते हैं ॥६॥
Connotation: - प्रातः और सायंकाल सदा ईश्वर से रक्षार्थ और साहाय्यार्थ प्रार्थना करनी चाहिये ॥६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे योद्धा ! (विश्वा, धनानि, जिग्युषः) सर्वविध धनों को जीतकर प्राप्त करनेवाले (वावृधानस्य) सबसे बढ़े हुए (ते) आपकी (ऊतिम्) रक्षा की (वयम्, आवृणीमहे) हम याचना करते हैं ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र का तात्पर्य्य यह है कि जब वह सम्राट् प्रजा के साहाय्य से विजय प्राप्त कर सब ऐश्वर्यों को अपने अधीन कर लेता है, तब सब राष्ट्र उसी के अधीन होकर उसी से अपनी रक्षा सर्वदा चाहते और उसी को अपना स्वामी समझते हैं, अतएव राष्ट्रपति को उचित है कि सर्व प्रकार से राष्ट्र की रक्षा करने तथा उसको सुखपूर्ण करने में सदा यत्नवान् हो ॥६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

रक्षायै प्रार्थना।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! ववृधानस्य=सृष्टिकार्य्ये पुनः पुनर्वर्धमानस्य=व्याप्रियमाणस्य। पुनः। विश्वा=विश्वानि=सर्वाणि। धनानि। जिग्युषः=प्राप्तवतः। ते=तव। ऊतिम्=रक्षां वयं सदा। वृणीमहे=प्रार्थयामहे। हे ईश ! यद्यपि सृष्टिरक्षायां स्वयमेव त्वं व्याप्रियमाणोऽसि। एवं सूर्य्यचन्द्रभूप्रभृतीनां महाधनानां त्वमेव स्वामी वर्तसे। यदि तव पालनं जगति न स्यात्तर्हि सर्वं वस्तु विनश्येत् अतस्त्वमेव सृजसि पासि संहरसि च तथापि वयं तव रक्षां याचामहे। आत्मन्यविश्वासात् ॥६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (विश्वा, धनानि, जिग्युषः) सर्वधनानि प्राप्नुवतः (वावृधानस्य) वृद्धस्य (ते) तव (ऊतिम्) रक्षाम् (वयम्, आवृणीमहे) वयं याचामहे ॥६॥