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अ॒सु॒न्वामि॑न्द्र सं॒सदं॒ विषू॑चीं॒ व्य॑नाशयः । सो॒म॒पा उत्त॑रो॒ भव॑न् ॥

English Transliteration

asunvām indra saṁsadaṁ viṣūcīṁ vy anāśayaḥ | somapā uttaro bhavan ||

Pad Path

अ॒सु॒न्वाम् । इ॒न्द्र॒ । स॒म्ऽसद॑म् । विषू॑चीम् । वि । अ॒ना॒श॒यः॒ । सो॒म॒ऽपाः । उत्ऽत॑रः । भव॑न् ॥ ८.१४.१५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:14» Mantra:15 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:15


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SHIV SHANKAR SHARMA

वह निखिल विघ्नविनाशक है, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (सोमपाः) सकल पदार्थों के रक्षक होने के कारण (उत्तरः+भवन्) उत्कृष्टतर होता हुआ तू (असुन्वाम्) शुभकर्मविहीना (संसदम्) मानवसभा को (विषूचीम्) छिन्न-भिन्न करके (व्यनाशयः) विनष्ट कर देता है ॥१५॥
Connotation: - परमात्मा न्यायकारी और महादण्डधर है। वह पापिष्ठ सभा को भी उखाड़ देता है। यह जानकर पापों का आचरण न करे, यह इसका आशय है ॥१५॥
Footnote: यह अष्टम मण्डल का चौदहवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे योद्धा ! (सोमपाः) सोमपानशील आप (उत्तरः, भवन्) सबसे उत्कृष्ट होते हुए (विषूचीम्) विरुद्ध नाना मार्गों में चलनेवाली (असुन्वाम्) आपका यज्ञ न करनेवाली (संसदम्) समिति को (व्यनाशयः) विघटित कर देते हैं ॥१५॥
Connotation: - उक्त प्रकार से वैदिक मार्ग में चलनेवाला शूरवीर सम्राट् राष्ट्र भर में सत्कार पाता और प्रत्येक यज्ञ में प्रथम भाग उसी को दिया जाता है, ऐसा राष्ट्रपति वेदविरुद्ध कर्मसेवी दुष्टजनों की शक्ति को छिन्न-भिन्न करने में समर्थ होता है ॥१५॥ यह चौदहवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

निखिलविघ्नविनाशकोऽस्तीति दर्शयति।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! त्वम्। सोमपाः=सोमानाम्=निखिलपदार्थानां पालकः। उत्तरः=सर्वेभ्य उच्चतर=उत्कृष्टतरोभवन् सन्। असुन्वाम्= शुभकर्मविहीनाम्। संसदम्=जनसंहतिम्। विषूचीम्= परस्परविरोधेन विषुनानागन्त्रीम्। व्यनाशयः=विशेषेण नाशयसि। तव निकटे प्रजाविघ्नोत्पादका उपद्रवकारिणो जना न तिष्ठन्तीत्यर्थः ॥१५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे योद्धः ! (सोमपाः) सोमपानशीलः (उत्तरः, भवन्) उत्कृष्टतरो भवन् त्वम् (विषूचीम्) विरुद्धं नानापथं गच्छन्तीम् (असुन्वाम्) अयाजिकाम् (संसदम्) समितिम् (व्यनाशयः) विनाशयसि ॥१५॥ इति चतुर्दशं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥