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इन्द्र॒मित्के॒शिना॒ हरी॑ सोम॒पेया॑य वक्षतः । उप॑ य॒ज्ञं सु॒राध॑सम् ॥

English Transliteration

indram it keśinā harī somapeyāya vakṣataḥ | upa yajñaṁ surādhasam ||

Pad Path

इन्द्र॑म् । इत् । के॒शिना॑ । हरी॒ इति॑ । सो॒म॒ऽपेया॑य । व॒क्ष॒तः॒ । उप॑ । य॒ज्ञम् । सु॒ऽराध॑सम् ॥ ८.१४.१२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:14» Mantra:12 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:12


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SHIV SHANKAR SHARMA

महिमा की स्तुति दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (केशिना) वनस्पति, वृक्ष और पर्वत आदि केशवाले (हरी) परस्पर हरणशील स्थावर जङ्गमात्मक द्विविध संसार (यज्ञम्) यजनीय=पूजनीय (सुराधसम्) और सुपूज्य (इन्द्रम्) परमात्मा को (सोमपेयाय) निखिल पदार्थों की रक्षा के लिये (उप+वक्षतः) अपने-२ समीप धारण किए हुए हैं। परमात्मा सर्वव्यापक है, यह इससे शिक्षा देते हैं ॥१२॥
Connotation: - ये सूर्य्यादि सब पदार्थ ही परमात्मा को दिखलाने में समर्थ हैं। अन्यथा इसको कौन दिखला सकता है। इन पदार्थों की स्थिति विचारने से उसका अस्तित्व भासित होता है ॥१२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (केशिना, हरी) प्रशस्त केशवाले अश्व (सुराधसम्) सुन्दर सिद्धिवाले (इन्द्रम्, इत्) इन्द्र को ही (उपयज्ञम्) यज्ञ के समीप (सोमपेयाय) सोमपान के लिये (वक्षतः) आवहन करते हैं ॥१२॥
Connotation: - जो राजा वेदोक्त गुणों का सेवन करता है, उसी को उत्कृष्ट रत्न प्राप्त होते हैं और उसी को प्रजाजन अपने-२ कर्मों की रक्षा के लिये आह्वान करते हैं, या यों कहो कि न्यायप्रिय, सत्यवादी तथा विश्वासपात्र राजा कभी धनहीन नहीं होता, उसको प्रजाजन अपने शुभ कर्मों में सदा आह्वान कर रत्नादि अर्पण करते और उससे सदैव अपनी रक्षा की याचना करते हैं ॥१२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

महिम्नः स्तुतिं दर्शयति।

Word-Meaning: - केशिना=केशिनौ=वनस्पतिभूरुहपर्वतादिरूपाः केशा विद्यन्ते ययोस्तौ केशिनौ। हरी=परस्परहरणशीलौ स्थावरजङ्गममात्मकौ संसारौ। यज्ञम्=यजनीयम्। सुराधसम्=शोभनपूजं शोभनधनञ्च। इन्द्रम्=परमात्मानम्। सोमपेयाय=निखिलपदार्थरक्षणाय। उप+वक्षतः=धारयतः। ईश्वरः सर्वव्यापकोऽस्तीति शिक्षते ॥१२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (केशिना, हरी) प्रशस्तकेशावश्वौ (सुराधसम्) सुसिद्धिम् (इन्द्रम्, इत्) योद्धारमेव (उपयज्ञम्) यज्ञसमीपम् (सोमपेयाय) सोमपानाय (वक्षतः) आवहतः ॥१२॥