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अ॒पामू॒र्मिर्मद॑न्निव॒ स्तोम॑ इन्द्राजिरायते । वि ते॒ मदा॑ अराजिषुः ॥

English Transliteration

apām ūrmir madann iva stoma indrājirāyate | vi te madā arājiṣuḥ ||

Pad Path

अ॒पाम् । ऊ॒र्मिः । मद॑न्ऽइव । स्तोमः॑ । इ॒न्द्र॒ । अ॒जि॒र॒ऽय॒ते॒ । वि । ते॒ । मदाः॑ । अ॒रा॒जि॒षुः॒ ॥ ८.१४.१०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:14» Mantra:10 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:10


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SHIV SHANKAR SHARMA

महिमा की स्तुति दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) इन्द्र जैसे (अपाम्) जलों का (ऊर्मिः) तरङ्ग (मदन्+इव) मानो, परस्पर क्रीड़ा करता हुआ बलपूर्वक आगे बढ़ता है। तद्वत् (स्तोमः) तेरे लिये विद्वानों से विरचित (स्तोमः) स्तुति समूह (अजिरायते) अग्रगमन के लिये शीघ्रता करते हैं अर्थात् प्रत्येक विद्वान् स्व-स्व स्तुतिरूप उपहार आपके निकट प्रथम ही पहुँचाने के लिये प्रयत्न कर रहा है। हे इन्द्र ! (ते) वे आपके (मदाः) आनन्द (वि+अराजिषुः) सर्वत्र विराजमान हो रहे हैं। हम लोग उसके भागी होवें ॥१०॥
Connotation: - सब ही विवेकी प्रातःकाल ही उठकर उसकी स्तुति करते हैं। हे भगवन् ! आपने सर्वत्र आनन्द बिछा दिया है। उसको लेने के लिये जिससे हममें बुद्धि उत्पन्न हो, वैसा उपाय दिखलाकर कृपा कर ॥१०॥
Footnote: आस्तिक विद्वानों को प्रतिदिन एक दो स्तोत्र बनाकर भगवदाराधन करना परम कर्त्तव्य है। जैसे सामुद्रिक तरङ्ग निरन्तर निज कौतुक दिखाकर मनुष्य जीवन के आह्लाद को बढ़ाता रहता है, तद्वत् पण्डित सर्वदा प्रजाओं को विश्वासी और श्रद्धालु बनाते हुए महान् आत्मा की ओर स्व-स्व कर्त्तव्य रज्जू द्वारा खेंचते रहते हैं ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे योद्धा ! (अपाम्, ऊर्मिः, इव) जल की तरङ्गों के समान (मदन्) हर्ष उत्पन्न करता हुआ (स्तोमः, अजिरायते) आपका स्तोत्र सर्वत्र फैल रहा है (ते, मदाः) आपके उत्पादित हर्ष (व्यराजिषुः) प्रजाओं में शोभित हो रहे हैं ॥१०॥
Connotation: - जिस प्रकार जल की तरङ्ग नई-नई एक के उपरान्त दूसरी, उसके बाद तीसरी इत्यादि निरन्तर उत्पन्न हुआ करती हैं, इसी प्रकार न्यायतत्पर राजा की तरङ्गरूपी स्तुति भी प्रजारूप जल में निरन्तर नई-नई उत्पन्न हुआ करती हैं, तभी उसके क्षात्रगुणों से प्रजा निर्विघ्न रहती है। अतएव राजा को उचित है कि अपनी निन्दा के भय से सब प्रजा में नया-नया हर्ष उत्पन्न करता रहे, जिससे सब प्रजा सन्तुष्ट रहकर सदैव उसकी अनुगामी हो ॥१०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

महिम्नः स्तुति दर्शयति।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! यथा अपाम्=जलानाम्। ऊर्मिः=तरङ्गः। मदन्निव=माद्यन्निव=परस्परं क्रीडन्निव बलेन वर्धते। तथैव विदुषां विरचितः। स्तोमः=स्तुतिसमूहः। अजिरायते=अग्रगमनाय शीघ्रायते। सर्वे खलु विद्वांसः स्वं स्वं स्तोत्रं तवाग्रे प्रथममेव प्रेरयितुं यतन्ते। ते=तव। मदाः=आनन्दाः। तव कृपया सदा। वि+अराजिषुः=विशेषेण शोभन्ते। अजिरः शीघ्रगन्ता स इवाचरतीति अजिरायते ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे योद्धः ! (अपाम्, ऊर्मिः, इव) जलतरङ्ग इव (मदन्) हर्षं जनयन् (स्तोमः, अजिरायते) स्तोत्रं ते व्याप्नोति (ते, मदाः) त्वयोत्पादिता हर्षाः (व्यराजिषुः) विराजन्ते ॥१०॥