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वृषा॒यमि॑न्द्र ते॒ रथ॑ उ॒तो ते॒ वृष॑णा॒ हरी॑ । वृषा॒ त्वं श॑तक्रतो॒ वृषा॒ हव॑: ॥

English Transliteration

vṛṣāyam indra te ratha uto te vṛṣaṇā harī | vṛṣā tvaṁ śatakrato vṛṣā havaḥ ||

Pad Path

वृषा॑ । अ॒यम् । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । रथः॑ । उ॒तो इति॑ । ते॒ । वृष॑णा । हरी॒ इति॑ । वृषा॑ । त्वम् । श॒त॒ऽक्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । वृषा॑ । हवः॑ ॥ ८.१३.३१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:13» Mantra:31 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:31


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SHIV SHANKAR SHARMA

इससे ईश्वर की स्तुति की जाती है।।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (अयम्+ते+रथः) अविभागरूप से अवस्थित जो यह सम्पूर्ण संसाररूप तेरा रथ है, वह (वृषा) निखिल कामों को देनेवाला है (उतो) और (ते) तेरे (हरी) विभाग से स्थित जो स्थावर और जङ्गमरूप द्विविध घोड़े हैं, (वृषणा) वे भी निखिल इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले हैं। (शतक्रतो) हे अनन्तकर्मन् परमात्मन् ! (त्वम्+वृषा) तू स्वयं कामवर्षिता है। परमात्मन् ! बहुत क्या कहें (हवः) तेरा आवाहन श्रवण, मनन आदिक भी (वृषा) समस्त अभीष्टप्रद है ॥३१॥
Connotation: - परमात्मा के सकल कर्म ही आनन्दप्रद हैं, अतः वही उपास्यदेव है ॥३१॥
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ARYAMUNI

अब कामनाओं की पूर्ति के लिये परमात्मा से प्रार्थना करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (अयम्, ते, रथः) यह आपका ब्राह्मण्डरूप रथ (वृषा) कामों की वर्षा करनेवाला है (उतो) और (ते, हरी) आपकी उत्पादन-पालनशक्तियें (वृषणा) कामनाप्रद हैं (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मवाले ! (त्वम्, वृषा) आप भी कामों की वर्षा करनेवाले हैं, इससे (वृषा, हवः) आपका आह्वान कामप्रद है ॥३१॥
Connotation: - हे कामनाओं को पूर्ण करनेवाले परमेश्वर ! यह आपका रचनारूप ब्रह्माण्ड अनेक पदार्थों से परिपूर्ण होने के कारण मनुष्यों की कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है। हे परमात्मन् ! आप ही इस सम्पूर्ण सृष्टि का पालन-पोषण करनेवाले, आप ही कर्मों का विस्तार करनेवाले और आप ही कामनाओं को पूर्ण करनेवाले हैं। हे प्रभो ! हम प्रजाजन आपकी शरण को प्राप्त हुए प्रार्थना करते है कि हमारी कामनाओं को पूर्ण कर हमें सुखप्रद हों ॥३१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वरस्तुतिं करोति ।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! ते=तव। अयमविभागेनावस्थितः संसाररूपो रथः। वृषा=कामानां वर्षिता। उतो=अपि च। ते=तव। हरी=स्थावरजङ्गमात्मकौ विभागेन स्थितौ द्विविधौ अश्वौ। वृषणा=वृषणौ=कामानां वर्षितारौ स्तः। हे शतक्रतो ! अनन्तकर्मन् परमात्मन् ! त्वं खलु। वृषा=सेवकानां प्राणिनां मनोरथपूरकः। हे इन्द्र ! तव हवः=आह्वानमपि। तव श्रवणमननावाहनाद्यपि। यदा वृषा=मनोरथानां वर्षितास्ति। तदा त्वं स्वयमेव वृषास्तीति किमु वक्तव्यम् ॥३१॥
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ARYAMUNI

अथ कामनापूर्तये परमात्मा स्तूयते।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (अयम्, ते, रथः) इदं ते रथरूपब्रह्माण्डम् (वृषा) कामानां वर्षिता (उतो) अथ (ते, हरी) तव उत्पत्तिस्थितिशक्ती (वृषणा) वर्षित्र्यौ (शतक्रतो) हे शतकर्मन् ! (त्वम्, वृषा) त्वमपि वर्षिता अतः (वृषा, हवः) तवाह्वानं वर्षिता ॥३१॥