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इ॒मा अ॑स्य॒ प्रतू॑र्तयः प॒दं जु॑षन्त॒ यद्दि॒वि । नाभा॑ य॒ज्ञस्य॒ सं द॑धु॒र्यथा॑ वि॒दे ॥

English Transliteration

imā asya pratūrtayaḥ padaṁ juṣanta yad divi | nābhā yajñasya saṁ dadhur yathā vide ||

Pad Path

इ॒माः । अ॒स्य॒ । प्रऽतू॑र्तयः । प॒दम् । जु॒ष॒न्त॒ । यत् । दि॒वि । नाभा॑ । य॒ज्ञस्य॑ । सम् । द॒धुः॒ । यथा॑ । वि॒दे ॥ ८.१३.२९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:13» Mantra:29 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:29


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SHIV SHANKAR SHARMA

फिर भी उसी विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यों ! (अस्य) इस इन्द्रवाच्य परमात्मा के (इमाः) ये पूर्वोक्त गुणग्राहिणी आज्ञापालनी और (प्रतूर्तयः) काम क्रोधादि वासनाओं को विनष्ट करनेवाली प्रजाएँ उस उत्तम (पदम्) पद को (जुषन्त) प्राप्त करती हैं। (यद्) जो पद (दिवि) सर्वप्रकाशक परमात्मा में है। अर्थात् मुक्ति को पाकर वे प्रजाएँ ईश्वर का साक्षात् अनुभव करती हैं (यथा+विदे) और विज्ञान के अनुसार जो (यज्ञस्य) निखिल शुभकर्म के (नाभा) नाभि में=मध्यस्थान में (संदधुः) सन्निकट होती हैं अर्थात् यज्ञ के तत्त्वों को जानती हैं ॥२९॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! उसी के कृपा से उत्तमोत्तम स्थान प्राप्त कर सकते हो, अतः उसी की उपासना करो ॥२९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अस्य) इस परमात्मा की (इमाः, प्रतूर्तयः) ये हिंसनशक्तियें (यत्) जो (दिवि, पदम्, जुषन्त) द्युलोक में स्थान को प्राप्त किये हुए हैं अतः (यथा, विदे) यथावत् ज्ञान के लिये (यज्ञस्य, नाभा) राज्य ब्रह्माण्ड की बन्धनशक्ति में (सन्दधुः) सबको धारण करती हैं ॥२९॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि यह परमात्मा की अपूर्व सीमा है कि जिसकी शक्ति से अनेक ब्रह्माण्ड किसी अन्य के आश्रय की अपेक्षा न करते हुए निराधार स्थिर है, जैसे सूर्य्य, चन्द्रमा, नक्षत्र आदि अनेक पदार्थ रचकर उनमें गति प्रवेश करके काल आदि विशेष ज्ञान के लिये धारण कर रहा है, जो उसकी महिमा को भले प्रकार प्रकट करते हैं ॥२९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमर्थमाह।

Word-Meaning: - हे मनुष्याः ! अस्येन्द्रस्य। इमाः=पूर्वोक्ता गुणग्राहिण्यः आज्ञापालिकाः। प्रतूर्तयः=प्रकर्षेण कामादीनां शत्रूणां हिंसित्र्यः प्रजाः। तद्दिव्यं पदं जुषन्त=जुषन्ते प्राप्नुवन्तीत्यर्थः। यत्पदं दिवि=सर्वप्रकाशके परमात्मनि वर्तते। पुनस्ता एव। यथाविदे=यथा विज्ञानाय विज्ञानपूर्वकम्। यज्ञस्य= निखिलशुभकर्मणः। नाभा=नाभौ=मध्यस्थाने। संदधुः= सन्निदधते=यज्ञस्य तत्त्वं जानन्तीत्यर्थः ॥२९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अस्य) अस्य परमात्मनः (इमाः, प्रतूर्तयः) इमा हिंसनशक्तयः (यत्) यस्मात् (दिवि, पदम्, जुषन्त) द्युलोके स्थानं लभन्ते तत् (यथा, विदे) यथावज्ज्ञानाय (यज्ञस्य, नाभा) यज्ञस्य बन्धनशक्तौ (सन्दधुः) सर्वान् संदधति ॥२९॥