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क॒दा त॑ इन्द्र गिर्वणः स्तो॒ता भ॑वाति॒ शंत॑मः । क॒दा नो॒ गव्ये॒ अश्व्ये॒ वसौ॑ दधः ॥

English Transliteration

kadā ta indra girvaṇaḥ stotā bhavāti śaṁtamaḥ | kadā no gavye aśvye vasau dadhaḥ ||

Pad Path

क॒दा । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । गि॒र्व॒णः॒ । स्तो॒ता । भ॒वा॒ति॒ । शम्ऽत॑मः । क॒दा । नः॒ । गव्ये॑ । अश्व्ये॑ । वसौ॑ । द॒धः॒ ॥ ८.१३.२२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:13» Mantra:22 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:11» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:22


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SHIV SHANKAR SHARMA

इस मन्त्र से प्रार्थना करते हैं।

Word-Meaning: - (गिर्वणः) हे समस्त उत्तम वाणियों से स्तवनीय ! हे स्तोत्रप्रिय (इन्द्र) इन्द्र ! (ते) तेरा (स्तोता) यशोगायक (कदा) कब (शन्तमः) अतिशय सुखी और कल्याणयुक्त (भवाति) होगा और (कदा) कब (नः) हम अधीनजनों को तू (गव्ये) गोसमूह में (अश्व्ये) घोड़ों के झुण्डों में और (वसौ) उत्तम निवासस्थान में (दधः) रक्खोगे। हे भगवन् ! ऐसी कृपा कर कि तेरे स्तोतृजन सदा सुखी होवें और उन्हें गाएँ घोड़े और अच्छे निवास मिलें ॥२२॥
Connotation: - हे भगवन् ! स्तोता को सौभाग्ययुक्त कर और उसको अन्य अभिलषित पदार्थ दे ॥२२॥
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ARYAMUNI

अब सुखी होने के लिये परमात्मा से और याचना करते हैं।

Word-Meaning: - (गिर्वणः) हे वाणियों द्वारा भजनीय (इन्द्र) परमात्मन् ! (ते, स्तोता) आपका उपासक (कदा) कब (शंतमः, भवाति) अत्यन्त सुखी हो (गव्ये) गोसमूह में (अश्व्ये) अश्वसमूह में (वसौ) धनसमूह में (नः) हमको (कदा, दधः) कब स्थापित करे ॥२२॥
Connotation: - हे सकल ऐश्वर्य्यसम्पन्न परमात्मन् ! आप अपनी परमकृपा से अपने उपासकों को सुख प्रदान करें और उनको गौ, अश्व, सन्तानरूप प्रजा तथा अन्नादि विविध प्रकार का धन दीजिये, जिससे वह सुखसम्पन्न होकर सदैव आपकी उपासना में प्रवृत्त रहें अर्थात् निरालस होकर सदा यज्ञानुष्ठान करें ॥२२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अनेन मन्त्रेण प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - हे गिर्वणः=गीर्भिः सर्वाभिरुत्तमाभिर्वाग्भिर्वननीय सेवनीय स्तवनीय। इन्द्र ! ते=तव स्तोता। कदा=कस्मिन् काले। शन्तमः=सुखतमोऽतिशयेन सुखवान्। भवाति=भविष्यति। हे इन्द्र ! कदा=कस्मिन् काले। नोऽस्मान् तवाधीनान्। गव्ये=गोसमूहे। अश्व्ये=अश्वसमूहे। वसौ=निवासस्थाने च। दधः=धारयिष्यसि= स्थापयिष्यसि ॥२२॥
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ARYAMUNI

अथ सुखित्वं तत्सकाशाद् याच्यते।

Word-Meaning: - (गिर्वणः) हे वाचा सेव्य (इन्द्र) परमात्मन् ! (ते, स्तोता) तवोपासकः (कदा) कस्मिन्काले (शंतमः, भवाति) सुखितमो भवेत् (गव्ये) गोसमूहे (अश्व्ये) अश्वसमूहे (वसौ) धने च (नः) अस्मान् (कदा, दधः) कदा दध्याः ॥२२॥