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इन्द्र॒: सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॒र्न्य॑र्शसा॒नमो॑षति । अ॒ग्निर्वने॑व सास॒हिः प्र वा॑वृधे ॥

English Transliteration

indraḥ sūryasya raśmibhir ny arśasānam oṣati | agnir vaneva sāsahiḥ pra vāvṛdhe ||

Pad Path

इन्द्रः॑ । सूर्य॑स्य । र॒श्मिऽभिः॑ । नि । अ॒र्श॒सा॒नम् । ओ॒ष॒ति॒ । अ॒ग्निः । वना॑ऽइव । स॒स॒हिः । प्र । व॒वृ॒धे॒ ॥ ८.१२.९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:12» Mantra:9 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:9


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसकी अनुग्रह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - परमात्मा किस प्रकार से विघ्नों को शमित करता है, यह इस ऋचा से दिखलाते हैं। यथा−(इन्द्रः) वह महान् देव (सूर्य्यस्य) परितः स्थित ग्रहों के नित्य प्रेरक सूर्य्य के (रश्मिभिः) किरणों से (अर्शमानम्) बाधा करनेवाले निखिल विघ्नों को (नि+ओषति) अतिशय भस्म किया करता है (अग्निः+वना+इव) जैसे अग्नि ग्रीष्म समय में स्वभावतः प्रवृत्त होकर वनों को भस्मसात् कर देता है, तद्वत् परमात्मा भक्तजनों के विघ्नों को स्वभाव से ही विनष्ट किया करता है। ईदृक् (सासहिः) सर्वविघ्नविनाशक देव (प्र+वावृधे) अतिशय जगत्कल्याणार्थ बढ़ता है ॥९॥
Connotation: - परमदेव ने इस जगत् की रक्षा के लिये ही सूर्य्यादिकों को स्थापित किया है। सूर्य्य, अग्नि, वायु और जलादि पदार्थों द्वारा ही सकल विघ्नों को शान्त किया करता है ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रः) वह परमात्मा (सूर्यस्य, रश्मिभिः) सूर्य की किरणों द्वारा (अर्शसानम्) शैत्यनिमित्तक विकारों को (न्योषति) दहन करता है, (अग्निः) जैसे अग्नि (वना इव) वनों को, अतः (सासहिः) अत्यन्त सहनशील परमात्मा (प्रवावृधे) सबको अतिक्रमण करके विराजमान है ॥९॥
Connotation: - वह पूर्ण परमात्मा, जो सर्वोपरि विराजमान है, वही हमारे दुःखों का हर्त्ता और सुखों का देनेवाला है। जैसे सूर्य्य अपनी रश्मियों द्वारा शीतनिमित्तक विकारों को निवृत्त करता है, तद्वत् परमात्मा सब विकारों को निवृत्त करके हमको सुख प्राप्त कराते हैं, अतएव उनकी आज्ञापालन करना ही सुख की प्राप्ति और परमात्मा से विमुख होना ही घोर दुःखों में पड़कर मनुष्यजीवन को नष्ट करना है ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

तस्यानुग्रहं दर्शयति।

Word-Meaning: - परमात्मा केन प्रकारेण विघ्नान् शमयतीत्यनया प्रदर्श्यते। यथा−इन्द्रः। सूर्य्यस्य=परितः स्थितानां ग्रहाणां प्रेरकस्यादित्यस्य। रश्मिभिः=किरणैः। अर्शमानम्=बाधमानं निखिलविघ्नम्। नि=नितराम्। ओषति=भस्मीकरोति। उष दाहे। अत्र दृष्टान्तः। अग्निर्वनेव=वना=वनानि इव यथा अग्निर्दहति तद्वत् परमात्मा भक्तानां सर्वविघ्नविनाशं करोति। ईदृक् सासहिरभिभवनशीलो देवः। प्र+वावृधे=प्रकर्षेण सदा जगत्कल्याणाय वर्धते ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रः) स परमात्मा (सूर्यस्य, रश्मिभिः) सूर्यस्य किरणैः (अर्शसानम्) शैत्यनिमित्तान् रोगान् (न्योषति) दहति (अग्निः) यथाग्निः (वना इव) वनानि दहति तद्वत् अतः (सासहिः) अति सोढासः (प्रवावृधे) सर्वानतिक्रम्य वर्तते ॥९॥