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य॒दा वृ॒त्रं न॑दी॒वृतं॒ शव॑सा वज्रि॒न्नव॑धीः । आदित्ते॑ हर्य॒ता हरी॑ ववक्षतुः ॥

English Transliteration

yadā vṛtraṁ nadīvṛtaṁ śavasā vajrinn avadhīḥ | ād it te haryatā harī vavakṣatuḥ ||

Pad Path

य॒दा । वृ॒त्रम् । न॒दी॒ऽवृत॑म् । शव॑सा । व॒ज्रि॒न् । अव॑धीः । आत् । इत् । ते॒ । ह॒र्य॒ता । हरी॒ इति॑ । व॒व॒क्ष॒तुः॒ ॥ ८.१२.२६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:12» Mantra:26 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:26


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसके गुण कीर्त्तन किए जाते हैं।

Word-Meaning: - (वज्रिन्) हे दण्डधारिन् न्यायकारिन् परमात्मन् ! (यदा) जब (नदीवृतम्) जलप्रतिबाधक (वृत्रम्) अनिष्ट को तू (शवसा) स्वनियमरूप बल से (अवधीः) निवारित करता है, (आद्+इत्) उसके पश्चात् ही (ते) तेरे (हर्य्यता) सर्व कमनीय (हरी) परस्पर हरणशील स्थावर और जङ्गमरूप द्विविध संसार तुझको (ववक्षतुः) प्रकाशित करते हैं अर्थात् वर्षाबाधक अनिष्ट निवारित होने पर सकलजन प्रफुल्लित होकर तेरी विभूति तेरी प्रकृति में देखते हैं ॥२६॥
Connotation: - मनुष्यों का जब विघ्न विनष्ट होता है, तब ही वह ईश्वर की ओर जाता है, तब ही वह प्रकृतिदेवी प्रसन्न होकर उसकी छवि प्रकट करती है ॥२६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वज्रिन्) हे वज्रशक्तिवाले ! (यदा) जब (नदीवृतम्) जलपूर्ण (वृत्रम्) मेघ को आप (शवसा) स्वपराक्रम से (अवधीः) भेदन करके वर्षण करते हैं (आदित्) तभी (ते) आपकी (हर्यता) सुन्दर (हरी) ऊष्मनाशक और सस्योत्पादक ये दो शक्तियें (ववक्षतुः) लोक को धारण करती हैं ॥२६॥
Connotation: - हे महान् शक्तिसम्पन्न परमेश्वर ! आपकी शक्ति से ही वर्षा होती और वर्षा से अन्न उत्पन्न होकर प्रजा का पालन-पोषण होता है अर्थात् वर्षा का करना तथा सस्योत्पादन=कृषी का उत्पन्न करना, ये दो शक्तियें, जो लोक को धारण करती हैं, आप ही के अधीन हैं ॥२६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

तस्य गुणाः कीर्त्यन्ते।

Word-Meaning: - हे वज्रिन्=हे दण्डधारिन्=न्यायकारिन् परमदेव ! यदा=यस्मिन् काले। नदीवृतम्=(नदीशब्देन जलानि लक्ष्यन्ते) जलान्यावृत्य तिष्ठन्तम्। वृत्रम्=विघ्नं जलशोषकमनिष्टम्। शवसा= स्वनियमबलेन। अवधीः=निवारयसि। आदित्=तदनन्तरमेव। ते हर्य्यता=प्रियौ। हरी=परस्परहरणशीलौ स्थावरजङ्गमौ संसारौ त्वाम्। ववक्षतुः=वहतः=प्रकाशयतः। तदा। प्रसन्नजनाः प्रकृतौ त्वां प्रत्यक्षवत् पश्यन्तीत्यर्थः ॥२६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वज्रिन्) हे वज्रशक्तिमन् ! (यदा) यस्मिन् काले (नदीवृतम्) जलपूर्णं (वृत्रम्) मेघम् (शवसा) स्वबलेन (अवधीः) निहंसि वर्षणाय (आदित्) अनन्तरम् (ते) तव (हर्यता) सुन्दर्यौ (हरी) ऊष्मशमनसस्योत्पादनशक्ती (ववक्षतुः) वहतो लोकम् ॥२६॥