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यद्वा॑ शक्र परा॒वति॑ समु॒द्रे अधि॒ मन्द॑से । अ॒स्माक॒मित्सु॒ते र॑णा॒ समिन्दु॑भिः ॥

English Transliteration

yad vā śakra parāvati samudre adhi mandase | asmākam it sute raṇā sam indubhiḥ ||

Pad Path

यत् । वा॒ । श॒क्र॒ । प॒रा॒ऽवति॑ । स॒मु॒द्रे । अधि॑ । मन्द॑से । अ॒स्माक॑म् । इत् । सु॒ते । र॒ण॒ । सम् । इन्दु॑ऽभिः ॥ ८.१२.१७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:12» Mantra:17 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:17


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SHIV SHANKAR SHARMA

इस ऋचा से उसकी प्रार्थना की जाती है।

Word-Meaning: - (शक्र) हे सर्वशक्तिमन् देव (यद्वा) अथवा तू (परावति) अतिदूरस्थ (समुद्रे+अधि) समुद्र में निवास करता हुआ (मन्दसे) आनन्दित हो रहा है और आनन्द कर रहा है। वहाँ से आकर (अस्माकम्+इत्) हमारे ही (सुते) यज्ञ में (इन्दुभिः) निखिल पदार्थों के साथ (सम्+रण) अच्छे प्रकार आनन्दित हो ॥१७॥
Connotation: - हे ईश्वर ! जहाँ तू हो, वहाँ से आकर मेरे पदार्थों के साथ आनन्दित हो ॥१७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शक्र) हे समर्थ ! (यद्वा) अथवा जो (परावति) अतिदूर (समुद्रे, अधि) द्युलोक के मध्य में (मन्दसे) आप प्रकाशमान् हो रहे हैं, वह आप (अस्माकम्, इत्) हमारे भी (सुते) निष्पादित कर्म में (इन्दुभिः) दीप्तियों के साथ (संरण) सम्यक् विराजमान हों ॥१७॥
Connotation: - हे सर्वव्यापक तथा सब कर्मों को पूर्ण करनेवाले परमेश्वर ! आप द्युलोकादि सब लोक-लोकान्तरों को प्रकाशित करते हुए स्वयं प्रकाशमान हो रहे हैं, हे प्रभो ! हमारे निष्पादित यज्ञादि कर्म में अपनी कृपा से योग दें कि हम लोग उनको विधिवत् पूर्ण करें ॥१७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अनया प्रार्थना विधीयते।

Word-Meaning: - हे शक्र ! सर्वशक्तिमन् ! यद्वा। परावति=परागते=अतिदूरे। समुद्रे अधि (अधिः सप्तम्यर्थानुवादी) =उदधौ च निवसन्। मन्दसे=आनन्दसि आनन्दयसि वा। तस्मादपि समुद्रात्। अस्माकमित्=अस्माकमेव। सुते=यज्ञे=शुभे कर्मणि। इन्दुभिः=पदार्थैः सह। त्वं संरण=सम्यग् रमस्व ॥१७॥
Footnote:
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शक्र) हे समर्थ ! (यद्वा) अथवा यत् (परावति) दूरतरे (समुद्रे, अधि) द्युलोकमध्ये (मन्दसे) प्रकाशसे (अस्माकम्, इत्) अस्माकमपि (सुते) क्रियमाणे कर्मणि (इन्दुभिः) दीप्तिभिः (संरण) संरमस्व ॥१७॥