Go To Mantra

गर्भो॑ य॒ज्ञस्य॑ देव॒युः क्रतुं॑ पुनीत आनु॒षक् । स्तोमै॒रिन्द्र॑स्य वावृधे॒ मिमी॑त॒ इत् ॥

English Transliteration

garbho yajñasya devayuḥ kratum punīta ānuṣak | stomair indrasya vāvṛdhe mimīta it ||

Pad Path

गर्भः॑ । य॒ज्ञस्य॑ । दे॒व॒ऽयुः । क्रतु॑म् । पु॒नी॒ते॒ । आ॒नु॒षक् । स्तोमैः॑ । इन्द्र॑स्य । व॒वृ॒धे॒ । मिमी॑ते । इत् ॥ ८.१२.११

Rigveda » Mandal:8» Sukta:12» Mantra:11 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:11


Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

उसके निर्माण की महिमा दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (यज्ञस्य) यजनीय=पूजनीय परमात्मा का (गर्भः) स्तुति पाठक यद्वा परमात्मतत्त्व के ग्रहण करनेवाला विद्वान् ही (आनुषक्) आनुपूर्विक=एक एक करके (क्रतुम्) शुभकर्म को (पुनीते) पवित्र करता है। वह गर्भ कैसा है (देवयुः) मन और वचन से केवल ईश्वर की शुभ इच्छा की कामना करनेवाला। ऐसा स्तोता (इन्द्रस्य) परमात्मा के (स्तोमैः) स्तोत्रों से=परमेश्वर की सेवा से इस जगत् में तथा अपर लोक में (वावृधे) उत्तरोत्तर उन्नति करता ही जाता है और (मिमीते+इत्) वह भक्त नाना विज्ञानों और शुभ कर्मों को रचता ही रहता है यद्वा (यज्ञस्य+गर्भः) यज्ञ का कारण (देवयुः) परम पवित्र है और (क्रतुम्) कर्म करनेवाले पुरुष को (पुनीते) पवित्र करता है, इत्यादि ॥११॥
Connotation: - जो कोई एकाग्रचित्त होकर ज्ञानपूर्वक उसका यजन करता है, वह पवित्र होता है और उसकी कीर्ति जगत् में विस्तीर्ण होती है ॥११॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यज्ञस्य, गर्भः) यज्ञ का संग्रह करनेवाला ऋत्विक् (देवयुः) देवों को चाहनेवाला (आनुषक्) क्रम से (क्रतुम्, पुनीते) सब यज्ञों का अनुष्ठान करता और (स्तोमैः) स्तोत्रों द्वारा (इन्द्रस्य, वावृधे) परमात्मा को बढ़ाता है, वह (मिमीते, इत्) परमात्मा को प्रकाशित ही करता है ॥११॥
Connotation: - यज्ञ का प्रारम्भ करनेवाला ऋत्विक् सब विद्वानों की उपस्थिति में यज्ञ का अनुष्ठान करता हुआ स्तोत्रों द्वारा प्रथम परमात्मा का यजन करता अर्थात् परमात्मा की महिमा को सब पर प्रकट करके उसके महत्त्व को बढ़ाता और पश्चात् यज्ञ का प्रारम्भ करता है ॥११॥
Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

तदीयनिर्माणमहिमानं दर्शयति।

Word-Meaning: - यज्ञस्य=यजनीयस्य इन्द्रस्य। गर्भः=गरिता स्तोता। यद्वा। ग्रहीता परमात्मतत्त्वविज्ञाता। आनुषक्=आनुपूर्व्येण=क्रमशः आद्यन्त- पर्य्यन्तम्। क्रतुम्=शुभमनुष्ठेयं कर्म। पुनीते=शोधयति। कीदृशो गर्भः। देवयुः=देवं परमात्मानं मनसा वाचा यः कामयते स देवयुः। यतः सदेव पुरतः क्रतुं पुनीते। स हीश्वरोपासकः। इन्द्रस्य=परमस्य देवस्य। स्तोमैः=स्तोत्रैः। वावृधे=लोकेऽस्मिन् अमुष्मिन्नपि वृद्धंगतो भवति। अतः सोऽपि भक्तः मिमीते इत्। विविधानि विज्ञानानि शुभमार्गांश्च निर्मात्येव ॥११॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यज्ञस्य, गर्भः) यज्ञस्य गृहीता ऋत्विक् (देवयुः) देवानिच्छन् (आनुषक्) क्रमेण (क्रतुम्, पुनीते) यज्ञं साधयति (स्तोमैः) स्तोत्रैः (इन्द्रस्य, वावृधे) इन्द्रं वर्धयति सः (मिमीते, इत्) ईश्वरं साधयति हि ॥११॥