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य इ॑न्द्र सोम॒पात॑मो॒ मद॑: शविष्ठ॒ चेत॑ति । येना॒ हंसि॒ न्य१॒॑त्रिणं॒ तमी॑महे ॥

English Transliteration

ya indra somapātamo madaḥ śaviṣṭha cetati | yenā haṁsi ny atriṇaṁ tam īmahe ||

Pad Path

यः । इ॒न्द्र॒ । सो॒म॒ऽपात॑मः । मदः॑ । श॒वि॒ष्ठ॒ । चेत॑ति । येन॑ । हंसि॑ । नि । अ॒त्रिण॑म् । तम् । ई॒म॒हे॒ ॥ ८.१२.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:12» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः इन्द्र नाम से परमात्मा की स्तुति की जाती है।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र (शविष्ठ१) हे अतिशयबलवान् ! देव परमपूज्य ! (यः) जो तेरा (सोमपातमः) अतिशय पदार्थों की रक्षा करनेवाला वा कृपादृष्टि से अवलोकन करनेवाला (मदः) हर्ष=आनन्द (चेतति) सर्ववस्तु को याथातथ्य जानता है। “कहीं गुण ही गुणिवत् वर्णित होता है” और (येन) जिस सर्वज्ञ मद के द्वारा तू (अत्रिण२म्) अत्ता=जगद् भक्षक उपद्रव का (हंसि) हनन करता है (तम्) उस मद=आनन्द की (ईमहे) हम उपासकगण प्रार्थना करते हैं। ईमहे−ईधातु गत्यर्थ और याचनार्थक दोनों है ॥१॥
Connotation: - यदि ईश्वरीय नियम से हम मनुष्य चलें, तो कोई रोग नहीं हो सकता, अतः इस प्रार्थना से आशय यह है कि प्रत्येक आदमी उसकी आज्ञापालन करे, तब देखें कि संसार के उपद्रव शान्त होते हैं या नहीं ॥१॥
Footnote: १−शविष्ठ=शव यह नाम बल का है। जो परमबलिष्ठ हो, वह शविष्ठ। परमात्मा से बढ़कर कोई बलिष्ठ है नहीं, अतः वह शविष्ठ है। २−अत्रि=अत्रि और अत्रिन् में बहुत भेद है। ज्ञानी मुनि अग्नि आदि अर्थ में अत्रि शब्द और भक्षक उपद्रवी इत्यादि अर्थ में अत्रिन् शब्द प्रयुक्त होता है ॥१॥
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ARYAMUNI

अब परमात्मा को सर्वोपरि बलवान् कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! आप (सोमपातमः) सकल उत्पन्न पदार्थों के लयकर्त्ता हैं (यः, मदः) जो आपका बल (शविष्ठः) सब बलों में श्रेष्ठ और (चेतति) सर्वत्र जागरूक है, (येन) जिससे (अत्रिणम्) वेदत्रयमार्गरहित को (निहंसि) नष्ट करते हैं, (तम्, ईमहे) उस बल की हम याचना करते हैं ॥१॥
Connotation: - हे सर्वोपरि बलवान् परमेश्वर ! आप सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति, स्थिति तथा लयकर्त्ता हैं, आप सब बलों में सर्वश्रेष्ठ बलवान् तथा व्यापकत्वेन सर्वत्र जागरूक होकर सब कर्मों में द्रष्टा और वेदमार्ग से रहित पुरुषों के दण्डदाता हैं अर्थात् आप सम्पूर्ण लोक-लोकान्तरों को अपने स्वरूप में धारण करते हुए सूक्ष्म और स्थूल संसार को एकदेश में रखकर सर्वत्र व्यापक हैं। हे प्रभो ! हम आपसे याचना करते हैं कि आप हमें शारीरिक, आत्मिक तथा सामाजिक बल प्रदानकर बलवान् बनावें, ताकि हम अपने अभीष्ट फल को प्राप्त होकर मनुष्यजन्म सफल करें ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनरिन्द्रनाम्ना परमात्मा स्तूयते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र=महादेव। हे शविष्ठ=अतिशयेन बलवत्तम। शव इति बलनाम। यस्तव। सोमपातमः=अतिशयेन सोमान्=पदार्थान् पाति=रक्षति। यद्वा। पिबति=कृपादृष्ट्या अवलोकयतीति सोमपातमः=अनुग्रहदृष्ट्या पदार्थद्रष्टा। मदः=हर्षः। चेतति= विजानाति सर्वं तत्त्वतो जानाति। येन सर्वज्ञात्रा मदेन। अत्रिणम्=अत्तारं जगद्भक्षकमुपद्रवम्। हंसि=शमयसि। तं मदम्। वयमीमहे=प्रार्थयामहे। क्वचिद् गुण एव गुणिवद् वर्ण्यते ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मनः सर्वोपरि बलवत्त्वं कथ्यते।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! त्वम् (सोमपातमः) उत्पन्नपदार्थानां लयकर्त्तासि (यः, मदः) यो भवतो बलम् (शविष्ठः) सर्वेषु बलेषूत्तमः (चेतति) सर्वत्र जागरूकश्चास्ति (येन) येन बलेन (अत्रिणम्) वेदत्रयमार्गरहितम् (निहंसि) न रक्षसि (तम्) तत्ते बलम् (ईमहे) याचामहे ॥१॥