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मम॑ त्वा॒ सूर॒ उदि॑ते॒ मम॑ म॒ध्यंदि॑ने दि॒वः । मम॑ प्रपि॒त्वे अ॑पिशर्व॒रे व॑स॒वा स्तोमा॑सो अवृत्सत ॥

English Transliteration

mama tvā sūra udite mama madhyaṁdine divaḥ | mama prapitve apiśarvare vasav ā stomāso avṛtsata ||

Pad Path

मम॑ । त्वा॒ । सूरे॑ । उत्ऽइ॑ते । मम॑ । म॒ध्यन्दि॑ने । दि॒वः । मम॑ । प्र॒ऽपि॒त्वे । अ॒पि॒ऽश॒र्व॒रे । व॒सो॒ इति॑ । आ । स्तोमा॑सः । अ॒वृ॒त्स॒त॒ ॥ ८.१.२९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:1» Mantra:29 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:29


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसकी स्तुति कब-२ करनी चाहिये, यह इससे दिखलाया जाता है।

Word-Meaning: - (वसो) हे सर्वत्र निवासिन् ! हे सर्ववासक ! हे धनस्वरूप ! परमात्मन् ! (मम) मेरे (स्तोमासः) स्तोत्र (त्वा) आपको (सूरे) सूर्य्य के (उदिते) उदित होने पर अर्थात् पूर्वाह्न समय में (आ+अवृत्सत) मेरी ओर ले आवें। (दिवः) दिन के (मध्यंदिने) मध्य समय में (मम) मेरे स्तोत्र आपको मेरी ओर करें। (प्रपित्वे) सायङ्काल (मम) मेरे स्तोत्र आपको मेरी ओर करें और (अपिशर्वरे) रात्रिकाल में भी मेरे स्तोत्र आपको मेरी ओर ले आवें ॥२९॥
Connotation: - प्रातः, सायं, मध्याह्न और रात्रि में भी सर्वदा परमात्मा स्मरणीय है। उसके अनुशासन को वारंवार स्मरण कर जगद्व्यापारों में मन दातव्य है। ईश्वर की प्रार्थना के लिये कोई समय नियत नहीं ॥२९॥
Footnote: १−इस प्रकार के मन्त्र अन्यत्र भी आए हैं। यथा−हवे त्वा सूर उदिते हवे मध्यन्दिने दिवः ॥ ऋ० ८।१३।१३ ॥ (सूरे+उदिते) सूर्य्य के उदित होने पर प्रातःकाल (त्वा+हवे) तेरा आह्वान करता हूँ और (दिवः+मध्यन्दिने) दिन के मध्याह्नकाल में आपकी स्तुति करता हूँ। और ८।२७।२१। में भी देखिये। सूर और सूर्य्य एकार्थक हैं ॥२९॥
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ARYAMUNI

अब परमात्मा का सब कालों में स्मरण रखना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (वसो) हे व्यापक परमात्मन् ! (उदिते, सूरे) सूर्य्योदयकाल में (मम, स्तोमासः) मेरी स्तुतियें (दिवः) दिन के (मध्यन्दिने) मध्य में (मम) मेरी स्तुतियें (शर्वरे, प्रपित्वे, अपि) रात्रि प्राप्त होने पर भी (मम) मेरी स्तुतियें (त्वा) आप (अवृत्सत) आवर्तित=पुनः पुनः स्मरण करें ॥२९॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा के निदिध्यासन का वर्णन किया गया है कि सब कालों में परमात्मा का स्तवन करना चाहिये अर्थात् परमात्मा को सर्वव्यापक, सब कर्मों का द्रष्टा, शुभाशुभ कर्मों का फलप्रदाता और हमको अन्नवस्त्रादि नाना पदार्थों का देनेवाला इत्यादि अनेक भावों से स्मरण रखते हुए उसकी आज्ञापालन में तत्पर रहें, ताकि वह हमें शुभकर्मों में प्रवृत्त करे ॥२९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

कदा कदा स स्तोतव्य इत्यनया दर्शयति।

Word-Meaning: - हे वसो !=वसति सर्वत्र यः स वसुः व्यापकः परमात्मा। वासयतीति वा। वसु धनमस्यास्तीति वा। तत्सम्बोधने। मम=भक्तजनस्य। स्तोमासः=स्तोमाः स्तोत्राणि। त्वा=त्वाम्। सूरे=सूर्य्ये। उदिते=उदयं प्राप्ते पूर्वाह्णसमये। दिवः=दिनस्य। मध्यंदिने=मध्याह्ने। प्रपित्वे=प्राप्ते=दिवसस्यावसाने सायाह्ने। तथा अपिशर्वरे=शर्वरी रात्रिः। अपिगतः कालोऽपि शर्वरः। शार्वरे कालेऽपि=रात्रावपि। आ+अवृत्सत=आवर्तयन्तु= मदभिमुखं गमयन्तु ॥२९॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मनः सर्वदा स्मरणमुपदिश्यते।

Word-Meaning: - (वसो) हे व्यापक परमात्मन् ! (उदिते, सूरे) सूर्य्योदयकाले (मम, स्तोमासः) मम स्तुतयः (दिवः) दिवसस्य (मध्यन्दिने) मध्ये (मम) मम स्तुतयः (शर्वरे, प्रपित्वे, अपि) शार्वरे काले प्राप्ते अपि (मम) मम स्तुतयः (त्वा) त्वां (अवृत्सत) आवर्तयन्तु ॥२९॥