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एन्द्र॑ याहि॒ मत्स्व॑ चि॒त्रेण॑ देव॒ राध॑सा । सरो॒ न प्रा॑स्यु॒दरं॒ सपी॑तिभि॒रा सोमे॑भिरु॒रु स्फि॒रम् ॥

English Transliteration

endra yāhi matsva citreṇa deva rādhasā | saro na prāsy udaraṁ sapītibhir ā somebhir uru sphiram ||

Pad Path

आ । इ॒न्द्र॒ । या॒हि॒ । मत्स्व॑ । चि॒त्रेण॑ । दे॒व॒ । राध॑सा । सरः॑ । न । प्रा॒सि॒ । उ॒दर॑म् । सपी॑तिऽभिः । आ । सोमे॑भिः । उ॒रु । स्फि॒रम् ॥ ८.१.२३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:1» Mantra:23 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:14» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:23


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SHIV SHANKAR SHARMA

वह परमात्मा हमारे मित्र के समान है, अतः उसके साथ मित्रवत् व्यवहार भी करना चाहिये, यह शिक्षा इस ऋचा से देते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्रवाच्य परमात्मन् ! (आ+याहि) मेरे गृह पर आ। और (देव) हे देव ! तेरे ही दिये हुए (चित्रेण) नाना प्रकार के (राधसा) पवित्र धन या स्तोत्र से तू (मत्स्व) प्रसन्न हो। और हे भगवन् ! (सपीतिभिः) पुत्र पौत्र आदिकों के साथ पीयमान=भक्ष्यमाण (सोमेभिः) परमपवित्र यज्ञिय अन्नों से (उरु) विस्तीर्ण और (स्फिरम्) स्थूल (उदरम्) हम लोगों के उदर को अर्थात् सम्पूर्ण अङ्गो को (सरः+न) सरोवर के समान (आ+प्रासि) पूर्ण कर=पुष्ट कर ॥२३॥
Connotation: - ‘आयाहि मत्स्व’ इत्यादि क्रियाएँ परम श्रद्धा प्रकाशित करती हैं। यद्यपि वह परमात्मा न तो भूखा और न वह कभी खाता-पीता और न कभी दुःखी वा सुखी होता है। वह एकरस है। तथापि वह हमारा पिता, माता, बन्धु और मित्र है। हमारे निकट जो कुछ है, वह उसे श्रद्धापुरःसर निवेदित करते हैं और इससे उसकी मित्रता प्रकाशित करते हैं। इससे यह भी शिक्षा दी जाती है कि यदि कोई इन्द्र=परमैश्वर्यशाली विद्वान्, राजा, योगी ब्रह्मचारी और संन्यासी आदि अतिथि आवें, तो उनके साथ भी ऐसा ही सत्कार करें। इति ॥२३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे ऐश्वर्य्यसम्पन्न परमात्मन् ! (आयाहि) आप अन्तःकरण में आवें (देव) हे दिव्यगुणसम्पन्न प्रभो ! (चित्रेण, राधसा) अनेकविध धनों से हमको (मत्स्व) आह्लादित करें (उरु, स्फिरं, उदरं) अति विशाल अपने उदररूप ब्रह्माण्डों को (सोमेभिः, सपीतिभिः) सौम्य सार्वजनिक तृप्तियों से (सरः, न) सरोवर के समान (आप्रासि) पूरित करें ॥२३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपासक की ओर से सर्वैश्वर्य्यसम्पन्न परमात्मा से प्रार्थना है कि हे प्रभो ! आप हमारी शुभकामनाओं को पूर्ण करें और अनेकविध धनों से हमें सम्पन्न करते रहें, ताकि हम आपके गुणों का गान करते हुए आपकी उपासना में तत्पर रहें ॥२३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

स परमात्माऽस्माकं मित्रवद् वर्तते अतस्तत्समानमाचरणमपि विधेयमित्यनया ऋचा दर्शयति।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! मम गृहे त्वम्। आयाहि=आगच्छ। हे देव=द्योतमान ईश्वर ! चित्रेण=दर्शनीयेन। राधसा=पवित्रेण धनेन स्तोत्रेण वा सह। अस्माकं दर्शनीयं धनं स्तोत्रं च त्वत्कृपया प्राप्तं दृष्ट्वा। मत्स्व=माद्य। आनन्दितो भव आनन्दय चास्मान्। आगत्य च त्वम्। सपीतिभिः=पुत्रपौत्रादिभिः सह पीयमानैः। सोमेभिः=सोमैः सुखकारकैरन्नैः। उरु=विस्तीर्णम्। स्फिरं=स्थूलम्। उदरम्=उदरोपलक्षितं सम्पूर्णमस्माकं शरीरम्। सरो न=सर इव। आप्रासि=आपूरय। प्रा पूरणे धातुः ॥२३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (आयाहि) आगच्छान्तःकरणे (देव) हे देव ! (चित्रेण, राधसा) चित्रेण धनेन (मत्स्व) अस्मानाह्लादयतु (उरु, स्फिरं, उदरं) प्रवृद्धं स्वोदररूपं ब्रह्माण्डं (सोमेभिः, सपीतिभिः) सौम्याभिस्सह तृप्तिभिः (सरः, न) सर इव (आप्रासि) पूरयतु ॥२३॥