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आ त्व१॒॑द्य स॒धस्तु॑तिं वा॒वातु॒: सख्यु॒रा ग॑हि । उप॑स्तुतिर्म॒घोनां॒ प्र त्वा॑व॒त्वधा॑ ते वश्मि सुष्टु॒तिम् ॥

English Transliteration

ā tv adya sadhastutiṁ vāvātuḥ sakhyur ā gahi | upastutir maghonām pra tvāvatv adhā te vaśmi suṣṭutim ||

Pad Path

आ । तु । अ॒द्य । स॒धऽस्तु॑तिम् । व॒वातुः॑ । सख्युः॑ । आ । ग॒हि॒ । उप॑ऽस्तुतिः । म॒घोना॑म् । प्र । त्वा॒ । अ॒व॒तु॒ । अध॑ । ते॒ । व॒श्मि॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् ॥ ८.१.१६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:1» Mantra:16 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:16


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SHIV SHANKAR SHARMA

फिर उसी विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (वावातुः) अतिशय प्रार्थना करनेवाले (सख्युः) निज भक्त की (सधस्तुतिम्) सहस्तुति=प्राणों के साथ की हुई स्तुति सुनने के लिये (अद्य) आज तू (तु) शीघ्र (आ+गहि) आजा। (आ) तथा (मघोनाम्) धनिक पुरुषों वा ज्ञानी पुरुषों की (उपस्तुतिः) अत्यन्त प्रिय स्तुति (त्वा) तुझको (प्र+अवतु) प्राप्त हो, हमारे धनिक पुरुष भी तुम्हारी स्तुति करें। प्रायः धनमद में ईश्वर को वे भूल जाते हैं। (अध) तत्पश्चात् मैं सेवक भी (ते) तेरी (सुष्टुतिम्) शोभनस्तुति की (वश्मि) इच्छा करता हूँ ॥१६॥
Connotation: - सब कोई परमदेव की स्तुति करना चाहते हैं। भक्त, तत्त्ववित्, धनवान्, राजा और प्रजाएँ उसी की स्तुति करते हैं। मैं भी उसी की स्तुति करता हूँ। इसी प्रकार इतर आधुनिक जन भी उसकी प्रार्थना करें। धन, विज्ञान, सन्तान आदि की प्राप्ति होने पर मनुष्य को उचित है कि परमात्मा को धन्यवाद दे ॥१६॥
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ARYAMUNI

अब प्रत्येक शुभकार्य के प्रारम्भ में परमात्मा की उपासना करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (ववातुः, सख्युः) आपके भक्त और प्रिय हम लोगों की (सधस्तुतिं) समुदायस्तुति के (आ) अभिमुख होकर (अद्य) आज (तु) शीघ्र (आगहि) आकर प्राप्त हों। (मघोनां) यज्ञकर्ता हम लोगों की (उपस्तुतिः) स्तुति (त्वा) आपको (प्रावतु) प्रसन्न करे। (अध) इस समय (ते) आपकी (सुस्तुतिं) शोभनस्तुति को (वश्मि) हम चाहते हैं ॥१६॥
Connotation: - सब मनुष्यों को चाहिये कि प्रत्येक शुभकार्य्य के पूर्व यज्ञादि द्वारा परमात्मा की प्रार्थना-उपासना करके कार्य्यारम्भ करें, क्योंकि परमात्मा अपने भक्त तथा प्रिय उपासकों के कार्य्य को निर्विघ्न समाप्त करता है, इसलिये प्रत्येक पुरुष को उसकी उपासना में प्रवृत्त रहना चाहिये ॥१६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमर्थमाह।

Word-Meaning: - वावातुः=योऽतिशयेन वनुते परमात्मानं याचते प्रार्थयते स वावाता=अतिशयप्रार्थयिता तस्य। सख्युः=समानख्यानस्य परमात्मना सह समानाभिधानस्य भक्तजीवस्य। सधस्तुतिं=प्राणैः सह क्रियमाणां स्तुतिम्। हे इन्द्र ! अद्येदानीं। तु=क्षिप्रम्। आगहि=श्रोतुमागच्छ। आ=पुनः। मघोनाम्=धनवतां ज्ञानवतां वा नृणाम्। उपस्तुतिः=उपस्तोत्रम्। त्वा=त्वाम्। प्र अवतु=प्रगच्छतु प्राप्नोतु। अध=ततः। अहं सेवकोऽपि। ते=तव। सुष्टुतिं=शोभनां स्तुतिम्। वश्मि=कामये ॥१६॥
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ARYAMUNI

अथ प्रत्येककार्यारम्भे परमात्मप्रार्थना वर्ण्यते।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (ववातुः) तव संभक्तुः (सख्युः) प्रियस्य (सधस्तुतिं) सहस्तुतिं (आ) अभिलक्ष्य (अद्य) इदानीं (तु) क्षिप्रं (आगहि) आगच्छ (मघोनां) याज्ञिकानामस्माकं (उपस्तुतिः) स्तोत्रं (त्वा) त्वां (प्रावतु) प्रसादयतु (अध) अधुना (ते) तव (सुस्तुतिं) शोभनस्तुतिं (वश्मि) कामये ॥१६॥