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तवे॒दं विश्व॑म॒भित॑: पश॒व्यं१॒॑ यत्पश्य॑सि॒ चक्ष॑सा॒ सूर्य॑स्य । गवा॑मसि॒ गोप॑ति॒रेक॑ इन्द्र भक्षी॒महि॑ ते॒ प्रय॑तस्य॒ वस्व॑: ॥

English Transliteration

tavedaṁ viśvam abhitaḥ paśavyaṁ yat paśyasi cakṣasā sūryasya | gavām asi gopatir eka indra bhakṣīmahi te prayatasya vasvaḥ ||

Pad Path

तव॑ । इ॒दम् । विश्व॑म् । अ॒भितः॑ । प॒श॒व्य॑म् । यत् । पश्य॑सि । चक्ष॑सा । सूर्य॑स्य । गवा॑म् । अ॒सि॒ । गोऽप॑तिः । एकः॑ । इ॒न्द्र॒ । भ॒क्षी॒महि॑ । ते॒ । प्रऽय॑तस्य । वस्वः॑ ॥ ७.९८.६

Rigveda » Mandal:7» Sukta:98» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:23» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:6


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ARYAMUNI

जिस परमात्मा की कृपा से पूर्वोक्त विद्वान् उक्त ऐश्वर्य को प्राप्त होता है, अब सूक्त की समाप्ति में उसका वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (तव, इदम्, विश्वम्) तुम्हारा जो यह संसार है, यह (अभितः) सब ओर से (पशव्यम्) प्राणिमात्र का हितकर है, क्योंकि (यत्, पश्यसि) तुम इसके प्रकाशक हो (चक्षसा) और अपने तेज से आप (सूर्यस्य) सूर्य के भी प्रकाशक हैं, (इन्द्रः) “इन्दतीतीन्द्रः, इदि परमैश्वर्ये” हे परमात्मन् ! तुम (एकः) अकेले ही (गवाम्, असि) सब विभूतियों के आधार हो और (गोपतिः) सब विभूतियों के पति हो। (ते) तुम्हारा (प्रयतस्य) दिया हुआ (वस्वः) ऐश्वर्य (भक्षीमहि) हम भोगें ॥६॥
Connotation: - हे परमात्मन् ! आप सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक हैं और आपका यह संसार प्राणिमात्र के लिये सुखदायक है, जो कुछ हम इसमें दुःखप्रद अर्थात् दुःखदायक देखते हैं, वह सब हमारे ही अज्ञान का फल है ॥६॥
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ARYAMUNI

अथ सूक्तसमाप्तौ परमात्मा ऐश्वर्य्यदातृत्वेन वर्ण्यते।

Word-Meaning: - हे भगवन् ! (तव, इदम्, विश्वम्) तवेदं दृश्यमानं भुवनमखिलं (अभितः) सर्वतः (पशव्यम्) हितमस्ति यतः (यत्, पश्यसि) त्वमेवास्य प्रकाशकः (चक्षसा) स्वतेजसा (सूर्यस्य) सूर्यस्यापि प्रकाशकश्च (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (एकः) केवल एकस्त्वं (गवाम्, असि) विभूतीनामाधारोऽसि (गोपतिः) विभूतीनामीश्वरोऽसि च (ते) तव (प्रयतस्य) दत्तस्य (वस्वः) धनादेः (भक्षीमहि) वयं भोक्तारो भवेम ॥६॥