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दे॒वी दे॒वस्य॒ रोद॑सी॒ जनि॑त्री॒ बृह॒स्पतिं॑ वावृधतुर्महि॒त्वा । द॒क्षाय्या॑य दक्षता सखाय॒: कर॒द्ब्रह्म॑णे सु॒तरा॑ सुगा॒धा ॥

English Transliteration

devī devasya rodasī janitrī bṛhaspatiṁ vāvṛdhatur mahitvā | dakṣāyyāya dakṣatā sakhāyaḥ karad brahmaṇe sutarā sugādhā ||

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Pad Path

दे॒वी । दे॒वस्य॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । जनि॑त्री॒ इति॑ । बृह॒स्पति॑म् । व॒वृ॒ध॒तु॒र् । म॒हि॒ऽत्वा । द॒क्षाय्या॑य । द॒क्ष॒त॒ । स॒खा॒य॒ । कर॑त् । ब्रह्म॑णे सु॒ऽतरा॑ । सु॒ऽगा॒धा ॥ ७.९७.८

Rigveda » Mandal:7» Sukta:97» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:22» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:8


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (देवस्य) उक्त देव जो परमात्मा है, उसकी (बृहस्पतिम्) महत्ता को (रोदसी, देवी) द्युलोक और पृथ्वीलोकरूपी दिव्यशक्तियें (ववृधतुः) बढ़ाती हैं। हे जिज्ञासु लोगों ! (महित्वा) उसके महत्त्व को (दक्षाय्याय) जो सर्वोपरि है, उसको (सखायः) हे मित्र लोगो ! तुम भी (दक्षत) बढ़ाओ और (ब्रह्मणे) जिस परमात्मा ने वेद को (सुतरां) इस भवसागर के तरने योग्य (सुगाधा) सुखपूर्वक अवगाहन करने योग्य (करत्) बनाया है ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में द्युलोक और पृथिवीलोक के बृहस्पति परमात्मा को द्योतक वर्णन किया है, अर्थात् पृथिव्यादि लोक उसकी सत्ता को बोधन करते हैं। यहाँ ‘जनित्री’ के ये अर्थ हैं कि इसका आविर्भाव (प्रकट) करते हैं और ब्रह्म शब्द के अर्थ जो यहाँ सायणाचार्य ने अन्न के किये हैं, वह सर्वदा वेदाशय के विरुद्ध है, क्योंकि इसी सूक्त में ब्रह्मणस्पति शब्द में ब्रह्म के अर्थ वेद के आ चुके हैं, फिर यहाँ अन्न के अर्थ कैसे ? यूरोपदेशनिवासी मोक्षमूलर भट्ट, मिस्टर विल्सन और ग्रिफिथ साहब ने भी इस मन्त्र के अर्थ यही किये हैं कि द्युलोक और पृथिवीलोक ने बृहस्पति को पैदा किया। यह अर्थ वैदिक प्रक्रिया से सर्वथा विरुद्ध है, अस्तु ॥ इसका बलपूर्वक खण्डन हम निम्नलिखित मन्त्र में करेंगे ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (देवस्य) परमात्मनः (बृहस्पतिम्) महिमानं (रोदसी, देवी) द्यावापृथिव्यौ (ववृधतुः) वर्धयतः, हे जिज्ञासवः ! (महित्वा) तस्य महत्त्वं (दक्षाय्याय) यत्सर्वातिरिक्तं तत् (सखायः) मित्राणि ! यूयमपि (दक्षत) वर्धयत (ब्रह्मणे) यो हि वेदं (सुतराम्) सुखेन सागरतारकं (सुगाधा) सुखेन गाहनीयं (करत्) अकरोत् ॥८॥