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इ॒यं वा॑म॒स्य मन्म॑न॒ इन्द्रा॑ग्नी पू॒र्व्यस्तु॑तिः । अ॒भ्राद्वृ॒ष्टिरि॑वाजनि ॥

English Transliteration

iyaṁ vām asya manmana indrāgnī pūrvyastutiḥ | abhrād vṛṣṭir ivājani ||

Pad Path

इ॒यम् । वा॒म॒स्य । मन्म॑नः । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । पू॒र्व्यऽस्तु॑तिः । अ॒भ्रात् । वृ॒ष्टिःऽइ॑व । अ॒ज॒नि॒ ॥ ७.९४.१

Rigveda » Mandal:7» Sukta:94» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:17» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब सद्गुणों के ग्रहण के लिये कर्म्मयोगी तथा ज्ञानयोगियों का यज्ञ में आह्वान कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्राग्नी) हे कर्मयोगी तथा ज्ञानयोगी विद्वानों ! (वां) आपकी (इयं) यह (पूर्व्यस्तुतिः) मुख्यस्तुति (अभ्रात्) मेघमण्डल से (वृष्टिः, इव) वृष्टि के समान (अजनि) सद्भावों को उत्पन्न करती है, (अस्य) इस (मन्मनः) स्तोता के हृदय को भी शुद्ध करती है ॥१॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि जो लोग अपने विद्वानों के सद्गुणों को वर्णन करते हैं, वे मानों सद्गुणकीर्तनरूप वृष्टि से अङ्कुरों के समान प्रादुर्भाव को प्राप्त होते हैं ॥ तात्पर्य्य यह है कि जब जिज्ञासु लोगों की वृत्ति विद्वानों के सद्गुणों की ओर लगती है, तब वे स्वयं भी सद्भावसम्पन्न होते हैं और प्रजा में भी सद्भावों की वृष्टि करते हैं, इसलिये प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह विद्वानों के गुणों का कीर्तन करे ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ सद्गुणान् ग्रहीतुं यज्ञेषु कर्मयोग्यादीना-माह्वानमुपदिश्यते।

Word-Meaning: - (इन्द्राग्नी) हे कर्मयोगिन् ज्ञानयोगिंश्च विद्वांसौ ! (वाम्) युवयोः (इयम्) क्रियमाणा (पूर्व्यस्तुतिः) मुख्यस्तुतिः (अभ्रात्) मेघमण्डलात् (वृष्टिः, इव) वर्षणमिव (अजनि) सद्भावमुत्पदायति (अस्य, मन्मनः) अस्य स्तुतिकर्तुर्हृदयमपि शोधयति ॥१॥