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गी॒र्भिर्विप्र॒: प्रम॑तिमि॒च्छमा॑न॒ ईट्टे॑ र॒यिं य॒शसं॑ पूर्व॒भाज॑म् । इन्द्रा॑ग्नी वृत्रहणा सुवज्रा॒ प्र नो॒ नव्ये॑भिस्तिरतं दे॒ष्णैः ॥

English Transliteration

gīrbhir vipraḥ pramatim icchamāna īṭṭe rayiṁ yaśasam pūrvabhājam | indrāgnī vṛtrahaṇā suvajrā pra no navyebhis tirataṁ deṣṇaiḥ ||

Pad Path

गीः॒ऽभिः । विप्रः॑ । प्रऽम॑तिम् । इ॒च्छमा॑नः । ईट्टे॑ । र॒यिम् । य॒शस॑म् । पू॒र्व॒ऽभाज॑म् । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒ना॒ । सु॒ऽव॒ज्रा॒ । प्र । नः॒ । नव्ये॑भिः । ति॒र॒त॒म् । दे॒ष्णैः ॥ ७.९३.४

Rigveda » Mandal:7» Sukta:93» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:4


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्राग्नी) हे कर्म्मयोगी तथा ज्ञानयोगी विद्वानों ! आपकी (ईट्टे) स्तुति (विप्रः) बुद्धिमान् लोग इसलिये करते हैं कि आप (वृत्रहणा) अज्ञान के हनन करनेवाले हैं, (सुवज्रा) सुन्दर विद्यारूपी शस्त्र आपके हाथ में है, (प्रमतिमिच्छमानः) बुद्धि की इच्छा करते हुए (गीर्भिः) सुन्दर वाणियों से तुम्हारी स्तुति विद्वान् लोग करते हैं और (रयिं) धन की इच्छा करते हुए तथा (यशसं) यश की इच्छा करते हुए जो (पूर्वभाजं) सबसे प्रथम भजने योग्य अर्थात् प्राप्त करने योग्य है, (देष्णैः) देने योग्य (नव्येभिः) नूतन धनों से (प्रतिरतं) हमको आप बढ़ाएँ ॥४॥
Connotation: - यश और ऐश्वर्य्य के चाहनेवाले लोगों को चाहिये कि कर्म्मयोगी और ज्ञानयोगी पुरुषों को अपने यज्ञों में बुलाएँ और बुलाकर उनसे सुमति की प्रार्थना करें, क्योंकि विद्वानों के सत्कार के बिना किसी देश में भी सुमति उत्पन्न नहीं हो सकती। इसी अभिप्राय से परमात्मा ने इस मन्त्र में विद्वानों से सुमति लेने का उपदेश किया है ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्राग्नी) कर्मयोगिन् ज्ञानयोगिन् ! भवन्तौ (विप्रः) मेधावी नरः (ईट्टे, गीर्भिः) अतः स्तुतिभिः स्तौति यतो भवन्तौ (वृत्रहणा) मोहनाशकौ स्तः (सुवज्रा) शोभनविद्यारूपशस्त्रहस्तौ च (प्रमतिम्, इच्छमानः) स च स्तोता बुद्धिं कामयमानोतः स्तौति (रयिम्) धनं (यशसम्) कीर्तिं च (पूर्वभाजम्) प्रथममेव भजनीयं (देष्णैः) दातव्यैः (नव्येभिः) नूतनैः (प्रतिरतम्) पूर्वोक्तपदार्थैः नो वर्धयताम् ॥४॥